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सेठेज खेलन विचार स्तवन. ५२१ ॥१६॥ तेल तक घृत दूध दही। नग्घामा मतमेले सही । पांचे तिथ मकरे आरंन । पाले शील तजे मनदंन ॥ १७ ॥ दिवश्वरम कीजे च नविहार । च्यारे आहार तणोपरिहार । दिवश तणा आलोए पाप । जि म लाजै सगला संताप ॥ १८ ॥ संध्या आवश्यक साचवे । जिनवर च रण शरण नव प्रवे । च्यारे शरणां दृढ करि रए । सागारी अणशण ले सुए ॥१९॥ करे मनोरथ मन एहवा । जाऊं तीर्थ शेजे जेहवा । समे त शिखर आबू गिरनार । बेटीस कबहुं धन अवतार ॥२०॥ श्राव ककी करनी चै एह । एहथी थायै नवनो नेह । आठे करम पमै पात ला। पापतणा बूटै आमला ॥ २१॥ वारू लहीये अमर विमान । अ नुक्रम पावै शिवपुर थान । कहै जिन हर्ष घणे ससनेह । करणी उख हरणी चै एह ॥ २२॥ इति श्रावककै अहनिशि कर्त्तव्य संपूर्णम् ॥१॥
॥॥श्रीपार्श्वजिन स्तवन लि०॥॥ ॥ ॥ सुण अर दाशा सुगुण निवाशा । अमचीपूरो प्रनु आशा रा ज (सु०) ॥ देख नदाशा अपणा दाशा । दीजै कलुक दिलाशा राज ॥१॥ (सु०) ॥ चामी चटकी नव मांहे लटकी । नाच्यो में विधन टकी राज (मु० ) हिव मन हटकी आपसुं अटकी । लागुं प्रनुपाय लटकी राज ॥२॥ (सु०) ॥ ते हम टाली मुगति संभाली। प्रीत अमे हीज पाली राज (सु०) एक हथाली वाजे ताली । वात अचंना वाली राज ॥३॥ (सु०) ॥ ते नपगारी पाश तुह्मारी । सेवामें विध सारी राज (मु०)॥ तत्व विचारी मन सुध धारी । श्रीधमशी सुख कारी राज ॥४॥(सु०)॥ इति श्रीपार्श्व जिन स्तवनम् ॥ * ॥
॥ ॥ अथ चौपम खेलन विचार स्तवन लि०॥॥ .
॥ ॥ (राग सोरठी)॥ * ॥ अरे माहरा प्राणीया (चतुर नर ) चौ पम इणविध खेलरे । अशुन करम मल कारकै (च०) । जाजम कर वै राग रे । वमीय विगयत वैसजो (च०)। जहां नहीं कुमतिको लागरे (अरे०)॥१॥ दान शील तप नावना (च०)। चोपड एह पसाररे। आठ दाव एक बोल में (च० ) आई करम निवाररे ॥२॥ (अरे०)