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तिथोंका मोटा बोटा स्तवन
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( उल्लालो ) साधियै मारग एह करणी न्यान जहीये निरमलो । सुर लोकने नरलोक माहें न्यान तते गलो । अनुक्रमें केवल न्यान पामी सासता मुख जेल है । जे करै पांचमी तप अखंति वीर जिणवर इम कहै ॥ १९ ॥ कलश ॥ इम पंचमी तप फल प्ररूपक वर्धमान जिलेसरो । मथुरायो श्रीमरिहंत भगवंत अतुल बल अलवेसरो । जयवंत श्रीजिनचंद सूरज सकल चंद नमु॑सीयो । वाचना चारिज समय सुंदर जगति नाव प्रसंसीयो ॥ २० ॥ ॥ २० ॥ इति श्रीपंचमी वृद्ध स्तवन संपूर्ण ॥ * ॥ ॥ अथ पंचमी लघुस्तवन ॥
॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ पांचमि तप तुमे करोरे प्राणी । निरमल पामो न्यानरे । पहिली न्याननें पढे किरिया | नही कोई न्यान समानरे ॥ प० ॥ १ ॥ नंदी सूत्रमें न्यान वखायो । न्यानना पंच प्रकाररे । मति श्रुत अवधि मनपर्यव । केवल न्यान श्रीकाररे ॥ पां० ॥ २ ॥ मति अठावीस श्रुति चवदैवीस। अवधि
संख प्रकाररे। दोय नेद मन पर्यव दाख्यो । केवल एक प्रकाररे ॥ पां० || ३ || चंद्र सूरज ग्रह नक्षत्र तारा । तेस्युं तेज आकासरे । केवल न्यान समो नही कोई । लोका लोक प्रकासरे ॥ प० ॥ ४ ॥ पारसनाथ प्रसाद करीनें । महारीपूरो नमेदरे । समय सुंदर कहै हुपिण पासुं। न्याननो पंचमों नेदरे ॥ पां० ॥ ५ ॥ इति श्रीपार्श्व जिनस्तवनं ॥
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॥ अथ अष्टमी लघुस्तवन ॥
॥ * ॥ अमल कमल जिम धवल विराजै । गाजै गोमी पास। सेवा सारै जेहनी । सुर नर मन धरिय नलास ॥ १ ॥ सोनागी साहिब मेरावे । अरिहां सुग्यानी पास जिणंदावे । (प्रकणी) सुंदर सूरति मूरति सोहै । मोमन अधिक सुहाय । पलक २ में पेखतां । मानुं नव नवी बवीय देखाय ॥ २ ॥ सोजागी० [अ० ॥ नवदुख गंजण जनम निरंजन । खंजन नयन सुरंग । श्रवण सुणी गुण ताहरा । माहरा विकस्या अंगो अंग ॥ ३ ॥ सो० ॥ ० ॥ दूरथकी हुँ आयो वहनें । दे वहलो दीदार । प्रारथियां पहिडेनही । साहिबा एह उत्तम आचार ॥ ४ ॥ सोनागी० प्र० ॥ प्रभु मुख चंद विलोकित हरखित । नाचत नयन चकोर । कमल हसै रवि दे