________________
९२
रत्नसागर.
पहिली काल हरानी ) ॥ ॥ पांचमि तप विधि सांगलो । जिम पामो जव पारोरे । श्रीअरिहंत इम नपदिसे । नवियणनें हित कारोरे ॥ प० ॥ १० ॥ मिगसर माह फागुण जला । जे प्रसाद वैसाखोरे । इण षटमासै लीजिये । शुदिन सद्गुरु साखोरे ॥ प० ॥ ११ ॥ देव जुहारी देहरे। गीता रथ गुरु बंदीरे । पोथी पूजो न्याननी । सगति हुवै तो नंदीरे ॥ प० ॥ १२ ॥ बेकर जोमी जावसुं । गुरु मुख करो उपवासोरे । पांचमि पडिक्कमणो करै । पढो पंडित गुरु पासोरे ॥ प० ॥ १३ ॥ जिए दिन पांचमि तप करो । ति दिन आरंभ टालोरे । पांचमि तवन थुई कहो । ब्रह्म चारिज पिण पालोरे ॥ ॥ प० ॥ १४ ॥ पांचमास लघुपंचमी । जाव जीव नत्कृष्टी रे | पांच बरस पांच मासनी । पांचमि करो शुभ दृष्टीरे ॥ पां० ॥ १५ ॥ ( ढाल २ नवालानी ) ॥ * ॥ हिव नवियणरे पांचमि जमणो सुणो । घर सारूरे वारू धन खरचो घणो । ए अवसर आवंतां वलि दोहिलो । पुएय जोगेरे धनपामंता सोहिलो। (बालो ) सोहिलो बलीय धन पामतां पिण धर्म काज किहां बली । पंचमी दिन गुरु पास यावी कीजीये कावसग रखी। त्रिण न्यान दरसण चरण टीकी देइ पुस्तक पूजीयै । थापना पहिली पूजकेसर सुगुरु सेवा कीजीये ॥ १६ ॥ सिद्धांतनी रे पांच परत वीटांगणा । पांच पूठारे मुख मल सूत्र प्रमुख तणा । पांच मोरारे लेखण पांच मजी सणा । वासकुंपारे कांबी वारू वरतणा । (नवालो ) वरतणा वारू वलिय कमली पांच फिल मिल प्रति ली । थापना चारिज पांच ठवणी मुहपती पर पाटली। पट सूत्र पाटी पंचकोथल पंच नव कर वालियां । इण परै श्रावक करे पांचमि नजमणो नजवालियां ॥ १७ ॥ वलि देहरेरे स्नात्र महोच्छव कीजिये । घर सारूरे दानवली तिहां दीजिये । प्रतिमानेरे प्रागंलि ढोवणो ढोइयै । पूजानारे जे जे उपगरण जोइये । (उल्लालो ) जोइये नप गरण देव पूजा काज कलशभृंगार ए । आरती मङ्गल थालदीवो धूपधाणो सारए । घनसार केसर अगर सूकम गुलहणो दीस। पंचपंच सगली वस्तु ढोवो सगतिसुं पचवीस ए ॥ १८ ॥ पांचमीतारे साहमी सर्व जीमारियै । रात्री जोगेरे गीत रसाज गवाडियै । इण करणी रे करता न्यान आराधियै । न्यान दरसणारे उत्तम मारग साधियै ।