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रत्नसागर. खनें । जिम जलधर आगम मोर ॥ सो० ॥ ५॥ किसकै हरि हर किसके ब्रह्मा। किसके दिल में राम । मेरै मनमें तूं वसै । साहिब सिव सुखनो गम ॥ सो० अ०॥६॥ माता वामा धन्य पिता जसु । श्रीअश्वसेन नरेश । जनम पुरी वणारसी। धन धन काशीनो देस ॥ सो अ० ॥७॥ संवत सतरैसै वावीस । वदि वैसाख वखाण । आठम दिन जल जावमुं। मोरी जात्र चढी परिमाण ॥ सो० अ० ॥ ८॥ सानिध कारी विधन नि वारी। पर नपगारी पास । श्रीजिनचंद जुहारतां । मोरी सफलफली सहु आस ॥ सो अ०॥९॥ इति श्री पार्श्वजिन स्तवनं ॥८॥ ॥ ॥
॥अथ दशमी वृद्धस्तवन ॥ .. ॥ॐ ॥ पास जिनेसर जगति लोए। गवडी पुर मंमण गुण निलाए। तवन करिस प्रनु ताहरो ए। मन वंडित पूरो माहरो ए॥१॥ नयरी नाम वणारसि ए । सुर नयरी जिन रिकै वंसी ए। तेण पुरी दीपतो ए। अस्वसेन राजा रिपु जीपतो ए॥२॥वामा तसुघरि नार ए। तमु गुणहि नलनै पार ए। तासु न्यर अवतार ए। तमु अतिसय रूप नदार ए॥३॥ चवद सुपन तिण निसि लह्याए। अनुक्रम करि तेसहु मन ग्रह्याए। पूनूपतिनें कह्या ए। करजोमि कह्या जे जिम लह्या ए॥४॥ (ढाल २)। प्रथम सुपनगज निरख्यो। मायतणोमन हरख्यो। बीजै वृषन नदार। धरणी जिण धरयो भार ॥५॥ तीजै सिंह प्रधान । जसुबल कोयनमान । चनथें देखी श्री देवी । कमल वसै सुर सेवी ॥६॥ पांचमै पुष्फनी माला । पंचवरण सुविशाला। जछे दीओएचंद । ग्रहगण केरोएइंद ॥७॥ सातमें सूरज सार । दूरकियो अंधकार । ठमें धजलहकंती । वरण विचित्र सोहंती ॥८॥ नवमें पूरण कुंच। रियो निरमल अंन । देखि सरोवर दसमें । मनह थयो अति विशमें ॥९॥ समुद्र इग्यारमें गमें । खीर जलधि जसु नामें । बारम देव विमान । वाजिनध्वनि गीत गान॥१०॥तेरम रतननी राशि। दहदिसि ज्योति प्रकाशि। सुपन चवदमें ए दीगे। पावक धूमथी मीगे॥११॥ सुपन कह्यासुविचार। हरष्यो नृपनदार। पुत्ररतन होस्यै ताहरै। थास्यै नदय हमारे॥१२॥(हा) चवदमुपन श्रवणेसुणी। हरषकियो मुविचार। सुंदर सुत तुमे जनमस्यो। कुल