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तिथोंका मोटा बोटा स्तवन. दीपक आधार॥१३॥वामाप्रीतम वचन सुणि।वी मंदर ऊत्ति। देव सुगु रुकीरत करी । जनम कियो सुकयस्थ ॥१४॥ इण अनुक्रमि कग्यो दिवस कीधा सुपन विचार। ते घरि पहुता आपणै। दीधा दान अपार ॥१५॥ (दाल)३॥8॥ हिवजनम्या जगगुरु जगत्रहुन जयकार। खिण इक नार कियै पायो सुक्ख अपार । दिशिकमरी मिलकर सूत्रकरम निशिकीध । करि थानक पुहती बंगित तेहनो सिद्ध ॥ १६ ॥ तिणहीज निशि चौसठ इंद्रमिली तिहां आवै । लेई निज जगतै सुरगिर स्नात्र करावै। करि जनम महोडव जननी पासे ठगवै । तिहांथी सुर सबमिली दीप नंदीसर जावै ॥१७॥ इम रयण विहाणी ऊगो दिवस नदार । घर२ गाईजै कीजै मङ्गलच्यार। इग्या रम दिवसे मिली सहू परिवार । तसु नाम दियो श्री नत्तम पास कुमार ॥१८॥ प्रनु वाधै दिन २ कलाकरी जिम चंद । त्रिहुं न्यान विराजित रूप जिसो देविंद। गुणकला विचरण विद्या तणोय निधान । योवन वय आयो परणायो राजान ॥१९॥ (ढाल ४)॥ ॥ कुमर पदै प्रनु रहितां काल सुखै गमें ए। आयो मन वैराग संयम लेवासमें ए। तव लो गंतिय देव जणावै अवसरू ए । देई संवबरी दान याचक जन सुख करू ए॥ २० ॥ स्वामी संयमलेइ इंद्रादिक सब मिल्या ए । देश बिदेश विहार करी क्रम निरदल्या ए। पामीय केवल न्यान सुरै महिमा करी ए। थापिय चनविह संघ मुगति रमणी वरी ए ॥ २१ ॥ ( ढाल )॥५॥ ॥ ॥ इम श्रीगौमी पास तणा गुण जे नर गावै । ते नर नारी इह पर लोगसु बंबित पावै । संघ करी संघ पत्ति जिके गवमी पुर जावै। चोर धाड संकट टलै विधन वुराई न आवै ॥२२॥धरणराय पनमावइ जास वहे सिर आण । सांवल वरण सुशोजित नवकर काय प्रमाण । कल्पवृद्ध चिन्तामणि काम गवी सम तोले । श्री गुणशेखर सीस समय रंग इण परिवोले ॥२३)॥ इति श्री पार्थ जिन स्तवनं ॥१०॥ ॥2॥
॥अथ एकादशी वृद्धस्तवन॥ ॥ ॥ समवसरण बैग जगवंत। धरम प्रकास श्री अरिहंत । बारे परषदा बैठी जुडी। मिगसर सुदि इग्यारस वमी ॥१॥ मल्लिनाथना ती