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रत्नसागर.
न ल्याए । जनम दिवानें केवल न्यान । अरि दीक्षा जोधी रूवमी ॥ मिः ॥ २ ॥ नमिनें ऊपनो केवल न्यान | पांच कल्याणक प्रति पर धान । ए तिथिनी महिमा ए वमी || मि० ॥ ३ ॥ पांच भरत ऐरवत इम हीज | पांच कल्याणक हुवै तिम हीज । पंचासनी संज्ञा परगमी ॥ मि० ॥ ४ ॥ प्रतीत नागति गिणतां एम । दो से कल्याणक थायै ते । कुण तिथ एतिथ जे वमी ॥ मि० ॥ ५ ॥ अनंत चौवीसी इण परि गिणो । लाभ अनंत उपवासां तणो । ए तिथि सहु तिथि सिर राखमी ॥ मि० ॥ ६ ॥ मोन पर्णे रह्या श्री मल्लिनाथ । एक दिवस संयम व्रत सा थ। मोनतणी परिव्रत इम पमी ॥ मि• ॥ ७ ॥ अठपुहरी पोसो लीजीयै । चौविहार विधj कीजीये । पि परमादन कीजै घमी ॥ मि• ॥ ८ ॥ वरस इग्यार कीजै उपवास | जावजीव पिए अधिक उल्हास 1 ए तिथ मोक्ष त णी पावी ॥ ॥ मि० ॥ ९ ॥ कजमणो कीजै श्रीकार न्यानना उपगरण इ ग्यार २ || करो कानसग्ग गुरुपाये पमी | मि० ॥ १० ॥ देहरे स्नात्र करी जे वली । पोथी पूजी जै मनरली । मुगति पुरी कीजै हूकमी ॥ मि० ॥ ॥ ११ ॥ मोन इग्यारस मोटो पर्व । आराध्यां सुखलही सर्व । बत पच्चक्खा करो आखमी ॥ मि० ॥ १२ ॥ जेसन सोल इक्यासी समें । कीधो तवन सहू मन गमै । समय सुंदर कहे करो द्याही || मि० ॥ १३ ॥ इति श्री एकादसी वृध स्तवनं संपूर्ण ॥ ११ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ ॥ तुमेरे मनमें प्रभु तुमेरे दिलमें। ध्यान धरूं पल २ में । पास जिणेसर अन्तर जामी । सेवकरुं बिन २ में ॥ ( ० १ ) ॥ काहू को मन तरुणीसुं राच्यो । काहू को चित्त धनमें । मेरो मन प्रजु तुमहीसुं रा च्यो । ज्युं चातक चितघनमें । ( ० २ ) जोगीसर तेरी गति जाणें । अलख निरंजण बिनमें । कनक कीरति सुख सागर तुमही । साहिब तीन वनमें ॥ ( ३ ॥ इति पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ११ ॥
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॥ अथ सास्वता असास्वता जिन बिंब नमस्कार स्तवन ॥
॥*॥ (देशी सूरती ) प्रहवी प्रभु ध्यानधरं नमुं सिध अनन्त । त्रिभुवन मां नमणकरुं जेबिंबरहंत । जुवन पति व्यन्तर योतषि बैमानिक मांह | अ