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रत्नसागर.
वाजता चौताला ॥ १२ ॥ बी जुगतमें सिंघासन कर । कोट बनाया देव का । जगो जगोपर शिखर चढाया । दरवाजा शुभ केवलका । नामंडल के आगे सोनता । मूल गंजारा आरसका । पीछें पचीश देरीयां सोजित | सिरे काम सिंघासनका ॥ १३ ॥ मूलनायकके ऊपर सोहे । सहस फणा प्रनु पारशका | चौमुखकी चतुराई बनी हे । बहु काम है सारसका । अ ढारसे पेंस सवाई | मुहूर्त्त फागुणमाश जला । सुदि त्रीजकं तखतें बेठे । जगो जगोपर नाम चला ॥ १४ ॥ देश देशके संघ बहु मिलकर । तेरे दर्शन कुं प्राया । जगतगुरू जिनराज जगतमें। बड़ी तेरी अक्कल माया । धर्म चंद जोगता सवाइने । बमा सामी वात्सल्य कीया । सकल संघकी आज्ञा लेकर । बडा शिखर नीशान दीया ॥ १५ ॥ करमचंद देवचं दने । खेम चंदने खूब कीया । पारसनाथकुं तखत वेठाके । जंगो जगो पर नाम कीया । कीर्त्ति विजय गुरु राजकुं प्रणमुं । पायगुरुका राज बा । गुलाबचंद साहेब के प्रागें । जिनशासनका काम बना ॥ १६ ॥ तेजा गा वत चँग रंगसें । ग्यान ध्यानसें खमा खमा ॥ हाथ जोड कर अरजी कर ता। पारसनाथजी तुंही बना ॥ बना काम तेरे हे साहेब । मुखसें नहिं कहणें आता ॥ शिव रमणीकुं वरी हे जिनजी । विजनकूं सुखके दाता ॥ १७ ॥ ॥ * ॥ अथ नेमनाथजीकी लावणी ॥ * ॥
॥ * ॥ नेमनाथ मोरी अरज सुनीजै । में हुं दाशी चरनोकी । तोरन फेर मत जा । तुमकुं सोगन यादवकी ॥ नेम० ॥ १ ॥ जान जेइ तुम ब्याहन आए । लारे सेना माधवकी ॥ बप्पन को यादव मिल आये। ए अवसर नहीं फिरनेंकी ॥ नेम० ॥ २ ॥ रथ फेरी गिरिवरकुं सि धाये। हमकुं बांकी नव जवकी । मेरे सामरे श्याम सजूने । में इहां नहीं अब रेनेंकी ॥ नेम० ॥ ३ ॥ सुए जिनजी में तोकुं कन हुँ । देखें सोना गिरिवरकी । मात पिता बंधव सब बंडी । जाशुं संगें यादवकी ॥ नेम० ॥ ॥ ४ ॥ हाथ जोरके वीनवे राजुल । बात सुनो पियु मुऊ घरकी । हमकुं ais चले निरधारी । अब हे प्रीतम सरणेकी ॥ नेम० ॥ ५ ॥ नेम कहे तुम सुनो हो राजुल । विषया रस है विष सरिखी । ये संसार असार निरंतर ।