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रत्नसागर.
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रहो ०
फिर रथ चमीयां ॥ रहो ० पशुय पोकार सुणीय किय करुणा । बोरुदी ए पशुपंखी चमीयां ॥ रहो ० २ ॥ गोद विधानं में बली जानुं । करूं वीन ति चरणे पमीयां ॥ पियुविण दीहते वरिस समोवड । न गमें स्वपनमें सेजडीयां ॥ रहो० ॥ ३ ॥ विरह दिवानी बिजपति जोवन । वामी वनघर सेरडीयां ॥ रहो ० ॥ अष्टवांतर नेह निवाहत । नवमे नवते वीब मीयां ॥ रहो ० ॥ ४ ॥ सहसा वनमांहे स्वामि सुणीनें । राजुल खत गिरि चमीयां ॥ रहो ० ॥ पियुकर निजशिरें हाथे देवा । बत चाखे चारित्र शेलडीयां ॥ रहो ० ॥ ५ ॥ जादववंश विभूषण नेमजी । राजुल मीठी वेलमीयां ॥ रहो ० ॥ ज्ञानविमल गुणे दंपती निरखत । हरषत होत मेरी आंख मीयां ॥ रहो ० ॥ ६ ॥ ॥ * ॥ अथ श्री पार्श्वनाथ चैत्यवंदन ॥ * ॥
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॥ ॐ ॥ कृष्ण चोथ चैत्रहतणी प्राणतथी श्राया । पोषवदि दशमी ज नम त्रिभुवन सुख पाया । पोषवदि इग्यारशें लहे मुनिवर पंथ । कमठासुर उपसर्गनो टाल्यो पलीमंथ । चैत्रकृष्ण चोथह दिनें ए । ज्ञानविमल गुण नूर । श्रावण शुदि आठमें लह्या । अविचल सुख भरपूर ॥ २३ ॥ इति ॥ ॥ * ॥ अथ थोय प्रारभ्यते ॥
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॥ * ॥ जलधर अनुकारें । पुण्यवती वधारे । कृत सुकृत संचारे वि घननें जे विकारे । नवनिधि आगारें कष्टनी कोडि वारे । मुऊ प्राणाधारे मात वामा मल्हारे ॥ १ ॥ र जनम सुहावे वीर चारित्र पावे । अनुभव लयलावे केवल ज्ञान पावे । षटजे कल्याण संप्रतिजे प्रमाणें । सवि जिनवर
श्री निवासाहि ठाए ॥ २ ॥ दश विधि आचार ज्ञानना जिहां विचार दश सत्य प्रकार पच्चख्खाणादि विचार । मुनि दश गुण धार जेजया जिहाँ नदार । ते प्रवचन सार ज्ञानना जे आगार ॥ ३ ॥ दश दिशि दिशि पाला जे महा लोग पाना । सुरनर महिपाला शुद्ध दृष्टी कृपाला । नय विमल विशाला ज्ञान ही मयाला । जय मंगल माला पास नामें सुखाला ॥ ४ ॥ ॥ ॥ अथ स्तवन प्रारंभ ॥ * ॥
॥ * ॥ थारे माथे पचरंगी पाघ सोनेरो बोगलो मारुजी ॥ ए देशी ॥