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२४ जिनचत्य०, थुई स्त०, चौमाशी देववंदन. १८३ र । मृगशिर शुदि इग्यारसे वर केवल धार । वदि दशमी वैशाखनी ए। अ खय अनंता सुख्ख । नय कहे श्री जिननामथी। नासे दोहग उक्ख ॥ २१॥ . .. ॥ * ॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥ .....
॥ॐ॥ नमी जिनवर मानो जेह नही विश्वगनो । सुत बप्रा मानो पुण्य केरो खजानो । कनक कमल वानो कुल जे जे कृपानो । सविनुवन प्रमानो तेहशुं एक तानो ॥ २१॥ ॥ॐ॥ ॥ ॥
#॥अथ श्री नेमीनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ - ॥ अपराजितथी आविया । काती वदि बारस । श्रावण शुदि पंचमी जण्या। यादव अवतंस । श्रावण मुदि बडे संजमी ।आसोज अमावस नाण। शुदिआषाढनी आठमे । शिवसुख लहे प्रमाण। अरिह नेमि अणपरणीया ए। राजिमतीना कंत । ज्ञान विमल गुण एहना । लोकोत्तर वृत्तंत ॥२२॥ इति॥
॥॥अथ थोय प्रारभ्यते ॥ * ॥ ॥ ॥ गया शस्त्रागारें शंख निज हाथ धारें। कियो. शब्द प्रचारें वि श्व कंप्यो तिवारें। हरि संशय धारे। एहनी कोइ सारे । जयो नेम कुमारे । बालथी ब्रह्म चारे॥१॥ चार जंबू प्रीपें विचरंता जिन देव । अमधात की खंभे सुरनर सारे सेव । अम पुष्कर अर) इणिपरें वीस जिनेश । संप तिए सोहे पंच विदेह निवेश ।। २ ॥ प्रवचन प्रवहण शम जवजल नि धिने तारे । कोहादिक मोटा मतणा जय वारें । जिहां जीवदया रस स रस सुधारस दाख्यो । वि नाव धरीने चित्त करीने चाख्यो॥३॥ जिन शासन सान्निध्य कारी विघन विमारे। समकित दृष्टी सुर महिमा जास वधारे। शेचेंज गिरि सेवो जिम पामो अवपार । कवि धीर विमलनो शिष्य कहे सुखकार ॥४॥ ॥॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ॐ॥अथ स्तवन प्रारंन॥8॥ ॥ रहो रहोरे यादव दो घमीया।दोघमीयां दोचार धमीयां । रहो रहोरे यादव०॥ (ए आकणी)। मोज महिराण शिवादेवी जाया । तुमें गे आधार अमवडीयां ॥१॥ रहो॥नाह विवाह चाह करीआए । क्युं जावत