SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ रत्नसागर. पुन्यकाल क्युं सोवै प्रानी ॥ ( जा० ) ॥ १ ॥ कमल खंग वन वन विकसा नी। अजुवन तेरी द्रग घरानी । चेतन धर्म अनादि तुमारो । जन संग तसें सुध विसरानी । ( जा० ) ॥ २ ॥ तुम कुल दोय अवस्ता पश्यै । नींद सुपन एजम नीसानी । प्रतम रूप संचार प्रापणो । कब तुमारे घर कुमती घरानी ॥ ( जा० ) ॥ ३ ॥ सुध बुध जूली निरुपम रूपकी । तातें घट वध होत कहांनी । निश्चै ग्यान स्वरूप तुमारो । ग्यांनसार पद निज रजधांनी ॥ ( जा० ) ॥ ४ ॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ राग वेलावल ॥ ॥ ॥ ॥ सांवरो सलणो सखी मेरे मन जावनो । रूप देखाय मेरो मन ललचावनो ॥ ( सां० ) ॥ १ ॥ तोरणसुं रथफेर चने पीया । ना जानुं ए काहिको रुसावनो ॥ (सां० ) ॥ २ ॥ नव जव नेह निनाहो नेम तुम । याहीतें कहा वदन दुरावणो । आनंद राजुल याकी प्रीत कपटकी । जयो पीया मुगत सखीको पांवनो ॥ ( सां० ) इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ राग ललित ॥ ॥ ॥ * ॥ आज रुषन घर आवे (देखो माई प्रा० ) रूप मनोहर ज गदानंदन । सबही मन नावे (दे० ) ||१|| केई मुगताफल थाल विशाला । मणि माणक जावै । हयगय रथ पायक केई कन्या । लेप्रनु वेग वधावै ॥ (दे० )॥ २ ॥ श्रीश्रेयांस कुमर दानेसर । इक्षुरस दान वहि रावै ॥ उत्तम दांन अधिक अमृत फल | साधुकीरत गुण गावै ॥ (दे०)॥३॥ ॥*॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ ॥ * ॥ रागरामकजी ॥ ॥ ॥ ॐ ॥ अंगन कलप फल्योरी । हमारे माई ( ० ) । रुचि वृद्धि सिद्धि सुख संपति दायक । श्रीशांतिनाथ मिल्योरी ( ह० ) ॥ १ ॥ केशर चंदन मृग मढ़ घोली । मांहि वरास मिल्योरी । पूजित श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा । अलग नदेग टटयोरी ॥ ( ह० ० ) ॥ २ ॥ शरणें राख कृपाकर साहिब । ज्यूंपारेवो पल्योरी । समय सुंदर कहै तुह्मारी कृपासें । हुंरहिसं सोहिलोरी (ह० ० ) ॥ इति पदम् ॥ * ॥
SR No.032083
Book TitleRatnasagar Mohan Gun Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktikamal Gani
PublisherJain Lakshmi Mohan Shala
Publication Year1903
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy