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राग रागण्यांका स्तवन.
४६५ ॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥॥ठगेने मोरा आतमराम । जिन मुख जोवा जइयैरे। जिनजी नो दरसण चै अति दोहिलो । ते किम सोहिलो जाणोरे । वार २ मानव जव एहवो । जुम्वो मुसकल टाणोरे ॥ (०)॥१॥ च्यार दिवशनो चटको मटको। देखीनें मतराचोरे । विनसी जातां वार न लागै । काया घटकै काचोरे ॥ (०) ॥२॥ अनन्तगुणे नरियो हे जिनवर । पूरब पुण्यें पायोरे । एहनें देखी दिलमें आनन्द । कर तूं सदा सवायोरे ॥ (०)॥ ३ ॥ हीरो हाथ अमोलक आयो। मूढ हिवै मति गमजोरे। सहिज सलूणा पास जिणंद जीसुं। राजी हुय चित रमज्योरे॥ (क) ॥४॥मन मांनीता माहरा आतम। करजे मुकृत कमाईरे । लान उदय जिनचंद्र लहीनें । वरतूं सिघ वधाईरे। (ऊ)॥५॥ इति पदम् ॥
॥राग केदारो॥॥ ॥ ॥ मज मन नानि नन्दन देव (ज.) ॥ ध्यांन मुनीजन अमि गधार । सुर नर करत है सेव ॥ (०) ॥१॥ चक्री नूपति वमे सुर पति । वासुदेव बलदेव । नमत ब्रह्मा रुद्र नारद । शेष मणिधर सेव ॥ (ज)॥ २ ॥ अशरन शरनहै विरुद जाको। नक्तिबबल नेव। राजसिंह प्रनु षन शिरपर। नाथ है नित मेव ॥ (ज०)॥३॥ इति ॥ ॥
॥ ॥ ताल तुमरी॥॥ ॥ ॥ वोनेम रह जावो सदन । हम कोंन संतावोरे (आ०) व्याहन आए सझके सजन । पमुवनको सुन देख रुदन । गिरनारी चले निज गमि वतन । तकसीर वतावोरे ॥ (आ०)॥१॥ पूनम जैसे चं द्रवदन । मनमोहन मूरत स्याम वरन । मेरे नीकी लगी नव नवकी लगन मती नेह दिखावोरे॥ (आ०)॥२॥ संयम दूती लागी श्रवण । प्रनुकुं सिखाये नीके भ्रमन । सब फूठे पमेंगे कोल वचन। रथ फेरी न जावोरे॥ (आ०)॥३॥ कपूर कहे अनुजीके चरण । राजुल मन वैराग धरन। लेहुं दोड नेम जिनजीके शरण । शिवपुर तो वतावोरे ॥ (आ०)॥४॥