________________
रत्नसागर. ॥8॥ (खेमटा ताल दादरा)॥॥
॥अधम जगकाम नये आगीवान । हे ना निकला मुखसें क जी नगवान ॥ यार नहीं देखा समो सरणा । किया नवदधिमें उदर नर णा । दोमजो लेते प्रनूसरणा । दूर पुःख होते जनम मरणा । वैठ नव वरमें लगाया नहीं ध्यान । राज शिवपुरमें हुवा अपमान । मरो अब दे खके काल खगवान ॥ हे० ॥१॥नाम जो जिनके दान देते । तो आ ढुं मद तुमसे दूर रहते । यारजो जिनके चरण सेते । तो शषी सुमताकों तुमें देते । रहे तप जपमें सदा जोसूर । वरै वो नव नव अगम सुख नूर । करै कपूर करम चकचूर । देखा जिन नूर हुवे ऽख दूर । करो नव पार सुनो महरवान ॥ नानि ॥२॥ इति जिनपद स्तवनम् ॥ ॥१॥
॥ॐ॥ (राग पीलू)॥ॐ॥ ॥ ॥आयो सही अब जानें कहां शरणागतकों शरणागत तेरी । (आ.) तोहू समान मिल्यो नहीं कोई । हूंढ फिरयो धरती सब हेरी। (आ०) होय दयाल महा प्रनुजी अब। आन नई तुम सें नट नेरी ॥ (आ.)॥१॥ दास कल्याण करै वीनती सुन । पारशनाथ सुपारस मेरी॥ (आ.)॥२॥ इति पदम् ॥१॥
___॥ ॥ (राग खम्बाज)॥ * ॥ ॥ ॥ घमी २ पल २ दिन २ निश दिन । प्रनूको समरण करलै रे। (घ० ) प्रनु समरण सबं पाप कटतहै । अशुन्न करम सब हरलैरे ॥ (घ) ॥१॥ मन वच काय लगी चरणन नित । झान हियेमें धर लैरे॥ (घ) दोलत राम प्रनु गुणगावै । मनवंछित फल वरलै रे ॥२॥ इति पदम् ॥
॥अथ शिखरागिरी स्तवन ॥ ॥ ॥ ॥ तुमतो नले विराजो जी । शांवलिया महाराज शिखरपर न ले विराजो जी ॥ तेरै घाटै चौकी लागै । श्रावक जाण न पावै । हुकम कियो श्रीपाशजिनेसर । बांह पका लेजावै ॥ (तु.)॥१॥ ऊंचा नीचा परबत सोहै। तलै निलनका वासा । म पैंम पर सिंह धमूकै । जिहां लिया तुह्म वासा ॥ (तु० )॥२॥ ढूंक ढूंकपर धजा विराजै । कालरके
(राग खम्बान । प्रनको हालेर