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राग रागण्यांका स्तवन. मणकारै । कालरके ऊणकारै सेती। वाजै अविचल वाजा॥ (तु० ) ॥३॥ दूर देशथी यात्री आवै । पूजा आण रचावै । अष्टद्रव्य पूजामें लावै । मनवंचित फलपावै ॥ ( तु०)॥४॥ सुर नर मुनिवर वंदन आवै । महा परम सुख पावै । चंदखुस्याल चरणको सेवक । हरष हरष गुण गावै॥ (तु.)॥५॥ इति पदम् ॥ * ॥
॥ ॥ पुनः॥ ॥ ॥ ॥ शिखर गिरेंद्र जुहारो। निज पातिक दूर निवारोरे ॥ (जवियां शि०)॥ इण सम तीर्थ न कोई। में देखा सहु जग जोई रे॥ (नसि०) ॥१॥ वीश जिनेसर आया। इहां मुक्ति पुरी सुख पायारे॥ (०)॥कोमा कोमी मुनि सीधा । जिहां अजर अमरपद लीधारे। (ज०) वीश चरण जिन सोहै । जविजन चात्रक मनमोह रे॥ (न० )॥२॥ध्रुव मठ मंदिर गजै । जिहां पास प्रनु महाराजरे॥ (न०)॥३॥ पावन तीरथ एहवो । इहां संसय धरवो न केहोरे (०) तीर्थ प्रासातन टालो । नविजन उहरीव्रत पालोरे॥ (०)॥ ४ ॥ नर नव लाहो लीजै । इण तीरथ म हिमा कीजैरे॥ (ज०) सय नगणीस ते तीसै । अगहन सुदि पंचमी दी सैरे॥॥ (ज०)॥५॥ दूगम गोत्र मुहावै । नवि चंद गोविंद गुण गावरे (०)। जात्रा करी मनरंग। चंदशिखर नणे अति चंगैरे ॥ (न० ॥६॥
॥ पुनः॥ ॥ .. ॥ * ॥ शांवरिया जैसें वणे तैसें तारो० ॥ (इस चालमें)॥ शांवरि यामें दीठो दरस तिहारो। मेरी जव नय वाधा टारो (शां० ) अश्वसेन नं दन जगवंदन । जगवंधव जगप्यारो । नीलवरण द्युति श्रीजिनवरकी वामा नदर अवतारो ॥ (शां० ) ॥१॥ कम विमारण शिव सुखकारण । तारण तरण निहारो । अलख अगोचर अगम अरूपी । निर्यामक सत्थवारो ॥ (शां० )॥ २॥ शिखर गिरी मंडन जिनवरजी । अदनुत महिमा वारो। करजोमी दोनं वीनती करत है। बुधसिंह अरजी धारो ॥ (शां० ) ॥३॥
॥ ॥ पावापुरी स्तवन लि०॥॥ ॥ * ॥ चरम प्रनु अरज हमारी धारो । मेरो आवागमन निवारो