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राग रागण्यांका स्तवन. लेईरे॥(ने०)॥२॥केइ नविक रसना कर दोस्ती । रत्न विमल पद पाय लईरे ॥ (ने) ॥३॥इति पदम् ॥ ॥
॥ ॥ पुनः॥ * ॥ ॥७॥आज प्रनु तोरै चरण लाग । मिथ्यात नींद में खोईरे॥ (आ०)॥ दरशण कर परसण जयोमेरे। आनंद चित अब पोईरे॥ (आ०)॥१॥ तुम विन ओर न कोई मेरै। देख्यो त्रिनुवन जोईरे॥०)॥२॥ दास तुमारो करत वीनती। तुम प्रनु जव जव होईरे ॥ (आ.)॥इति पदम् ॥
॥ ॥ पुनः ॥ ॥ ॥ * ॥रात गई अब प्रात होन नयो । क्या सोवे जीया जागरे (रा०) दोय घडी तमको अब रहीयो। उ धरम में लागरे॥ (रा०)॥ ॥१॥ जिनवाणी नर वीच धारलै । नर नरम सर्ब त्यागरे॥ (रा०)॥२॥ आणंद सुगुरु वचन हित मानो। ए सूधो शिव मागरे॥ (रा.)॥३॥
॥ पुनः॥ ॥ ॥ तुम विन दीनानाथ दयानिध कोन खबर लै मेरी । (तु०) भ्रम। त फिरयो संसार जगतमें। मेटो नवनी फेरी । (तु०)॥२॥॥ लव २ के प्रनु तुम जगनायक । राखो शरण तेरी । नदय आसरो पकड्यो तेरो शरन ग्रहीमें तेरी ॥ (तु.)॥३॥ इति पदम् ॥
॥॥राग विनास ॥१॥ ॥नोरन्जयो अब जाग वावरे ॥ (नो०) कोन पुन्यतें नर नव पायो। क्युं सूतो अब पाय दावरे ॥ (नो०) ॥१॥ धन वनिता सुत तात भ्रातकों । मोहमगन एह विकल नावरे । को इन तेरो तूं नहीं का को । इह संजोग अनाद सुनावरे॥१॥ (मो.) ॥२॥ आरज देश नत्तम गुरु संगत । पाई तें बहु पुन्य प्रनावरे । ग्यांनसार जिनमारग लाधो। क्यु डूबै अब पाय नावरे ॥ (नो०)॥३॥ इति पदम् ॥ ॥ ॥
___ ॥ (राग खट्)॥ ॥ ॥ ॥ जागरे सब रेन विहानी (जा० ) नदयो नदयाचल रवि मंगल