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चौमासो लावणी संग्रह. लाचार । पुनियां हरख वधामणा सिरै । आखात्रीज तिवाररे ॥ आ० ॥ ॥३॥ संकट काटो विघन निवारो । राखो हमारी लाज । बे कर जोमी नान्हू कहिता । षन देव महाराजरे॥०॥४॥ ॥
॥ * ॥श्री नेमिनाथ चौमासो॥ॐ॥ ॥ ॥ गई घटा गगनमें कारी । राजुलकुं विरह दुःख नारी ॥ ग. ॥ टेक॥ चौमासा लग्या रस नीना । अलि आषाढ रंग महीनां । चारु तरफसे वादल पीना। वीजुलीनें चमकनां कीना। दिल होल धमकता सी ना। मैं अबला सखी पति हीना (नमाना) सररररर चलत समीर । थर रररर करत सरीर । मररररर मरत समीर । अलि कैसी करुं तदबीर बुरी तकदीर । पीया बिन प्यारी । राजुलकुं विरह पुःख जारी ॥ ग० ॥१॥श्रावनमें श्याम घनघोर । जरजोर बोलते मोर । दाउर मिल करते दोर । पिक पिक पपैया सोर । म लग्यो बुंद ऊकजोर । बिच चमके दामिनी कोर । (नमावणी) खममममम ख घन माला। तडडडडड ज ल परनाला । अडडडडड नाला खाला। मैं पुःखी हुइ बेहाल हीयमें । साल हुई जलधारी॥रा०॥२॥नाद्रवमें पवन प्राचीना । बादलमैं धनु प रंगीना । जंगलमें नदी स्वरकीणा । ज्युं वाजे मनोहर बीणा । अबए से कहो क्या जीना। प्रीतमने मुझे दुःखदीना। (नमाना)युं विलपत मुख मुरझाई । सखीयन मिल दोम जगाई ।युं विलखत वचन सुनाई । सखी देखो पीयाकी रीत । तोमके प्रीत गये गिरनारी ॥रा०॥३॥आश्विनमेंजरा . नहीं धीर । यात्रु चंद नये वे पीर । न चली नेमके तीर । काटनकुं कर्म जं
जीर । प्रीतमसें लीयो अकसीर । व्रत संजम समकित हीर। (नमाना) शिव राजुल नेम सिधाये। इंद्रादिक जश गुण गाये । नविजन मिल शीश नमा ये। मुनि कहे कपूराचंद प्रेमसें बंद। जाळं बलिहारी ॥रा०॥४॥
॥॥श्री अजितनाथ महाराजकी लावणी ॥ * ॥ ॥ ॥ श्री अजितनाथ महाराज । गरीबनिवाज । जरूर जिनवरजी । सेवक शिरनामें तने नचारे अरजी। कर माफी मारावांक । रमलीयो रांक । अनंता नवमें ॥ २॥आव्यो बुं ताराशरण । बली पुःख दवमें । क्रोधादिक