________________
५०२
रत्नसागर.
धुकता चार | खरेखर खार | लग्या मुजकेमे ॥ २ ॥ वली पापी झारो नाथ । बेक बे। मुजरो मुज भगवान । करूं गुणगान । ध्यानमां धरजी ॥ २ ॥ सेवक० ॥ १ ॥ में पूरण कर्या बे पाप । सुणजो आप । कहुं कर जोगी ॥ २ ॥ मुऊ जुंगामां भगवान । जूल नहीं थोमी । जीवहिंसा अ परंपार । करी किरतार | हवेशुं कर्तुं ॥ २ ॥ तूं बहु बोली । साधनेंशुं हरवूं । तुक खोलामां मुऊ शीश । जाण जगदीश | गर्मे ते करजी ॥ २ ॥ सेवक० ॥ २ ॥ में किया बहुत कुकर्म । धरा नहीं धर्म पूर्ण हूँ पापी ॥ २ ॥
वो थई तारी प्राण । मेंज उत्थापी । में मूरख निंदा घणी । मुनि पर तणी । करी हरखायो ॥ २ ॥ परदारा देखी जबान । हुं ललचायो । किं कर कहे केशवलाल । प्राणीने व्हाल । दुःख तुं हरजी ॥ २ ॥ सेवक० ॥ ३ ॥ ॥ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ जावणी ॥
॥
॥
॥ ॥ मम्माई सहरमें चिंतामणि नेट्या चिंताचूरका ॥ टेक ॥ सब देशां काशी सिर, सिरे नगर वणारशी धार । सहुराजा शिरसेहरो' सिरे अश्वसेन कुल तारजी ॥ म० १ ॥ बामाकुखे अवतरया, सिरे नीजवरण तनधन्न । सतवरषांको आयु कहीजै, नवकर देहरतन्नजी ॥ म०३ ॥ मस्तक मुगुट काने युगकुंमल, हियमै नवसर हार अंगियां सहरयणेजमी, सिरै पीठनामंगल सारजी ॥ म० ॥ ३ ॥ तेजै रविजिम दीपता, सिरे मुखजिम पूनम चंद । हियको हेजे निरख तां, सिरै सब इंद्रिनो वृंदजी ॥ मम्माई • || नगणीसे गुणतीसमें, सिरै चैत्रक suta जाए। यात्रकरी सुनवेद तिथीकों, संघवी बुधसिंह जाणजी ॥ म० ॥ ५ ॥ लुंपक गण में सोनता, सिरे अजयराज जिनदास । संघ सहाये नेटिया, करे मुक्ति कमल अरदासजी ॥ म० ६ ॥ ॥ इति श्री बंबई मंगण श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ लावणी संपूर्णम् ॥ ॥ ॥ वीठोमा, श्रीगौनी पार्श्वनाथ लावणी ॥ ॥ * ॥ वीठोडा मांहें प्रगट थयारे गौमी पाशजी ॥ वी० टेक ॥ मरुधर देशमें ग्राम वीठोमा, उत्तम धरती पाय । चंदनमल लोढाकों सुपनो, मिलियो, पुन्यपसायजी ॥ बी० १ ॥ संघसाथ चंदनमल वनमें, जोवे चिहुँ दिशफेर । द्वितीयशुक्ल नजरुद्र तिथीकों, दीठो प्रतढे रजी || बी०२ ॥ प्रतदेख मग
॥ *॥
॥
॥