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रत्नसागर. तज्या सब सोले सिणगारा । आनूषण रत्नजडित सारा । लगे मोहे सबही सुख खारा । गेम कर चाली निरधारा॥दोहा॥ मात पिता परिवारकुं। तज तां न लागी वार । विजोग कर चली आपशुं । जाय चढी गिरनार । त रती नोमी मा प्यारी ॥ नेम०॥ ७ ॥ दया दिल पशुवनकी आई । त्याग जब कीनो उिनमांई । नेमि जिन गिरनारे जाई। पशुके बंधन बुडवाई ॥ दोहा ॥ नेम राजुल गिरनारपें । लीनो संजम दान। नवलराम करी ला वनी । नपन्यो केवल ज्ञान । जिनौकी किरिया बुधि सारी ॥ नेम०॥८॥
॥ ॥ श्री पार्श्वजिन आरती, लावणी चाल ॥॥ ॥ * ॥आरति करुं श्रीपार्थ प्रजुकी । जन्म बनारशी हे जिनका । घननं घननं वाजे घंट घण । ऐसा ध्यान धरूं जिनवरका ॥ आ० ॥१॥ जब कमासुर कोप कियो तब । स्याम घटा बिजुरी चमका । गिरुनो गाजजल मूशलधारा । धरम धरडका जन शंका॥ आ॥२॥ थररर आ सन कंपे सुरको । तव धरणीधर चित्त चमका । फण विस्तार हजार किये तब । ऊमक जाय प्रनु तन ढंका ॥ ० ॥ ३ ॥ जब पदमावति सब सि णगारे । ताथे नाचतले फिरका । ध्रमक ध्रमक धौं मादल वाजत । घननं घुग्घुरके घरका ॥ आ०॥ ४ ॥धीधी २ कट नोबत बाजै। धौधौं कट इंद नि धौंका । याविधगीत संगीत बजन सब । गांधर्व गान करे जिनका॥आ० ॥ ५ ॥ तननं तररर तंत ताल सब । मफ मोंमों करते मंका । रण फेर
के ऊणकारे । जागमदीकालरके ऊंका॥०॥ ६ ॥ सुर नर इंद्र सब जे जे करते । जीवत सफल नया जिनका । अमृत उदय तिणबेर नयो सुख । को विस्तार कहे तिनका॥०॥७॥इति
॥ ॥ ॥ ॥ आदि जिनेशर पारणो॥॥ ॥ ॥ आदि जिनेशर कियो पारणो । आ रस सेलडी ॥ आ० ॥ ( टेक ) घमा एकसो आठ शेलमी । रस नरियाने नीका । उलट नाव श्रेयांस वहिरावै । मांमदिवी आ बूकारे ॥ आ० ॥ १ ॥ देव कुंकुनी वाज रहीहे । सोनइयांरी वरखा । बारे माशशुं कियो पारणो । गइ नूख सब तिरखारे ॥ आ० ॥ २ ॥ शधि सिधि कारज मनो कामना। घर घर मंग