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नेमकीजान लावणी संग्रह. ॥ * ॥ अषन नाथ महाराज । सबे पुःखदालिद्र नंजन । झपन्न नाथ महाराज । सबे नूप मनरंजन । रुपन नाथ प्रथ्विनाथ । समरयों वाहर धायें खननाथ पृथ्विनाथ । मंगल नाम गवायें । दीप विजय कविराज बहापुर खलक मुलक हाजर रहे । कलि जुग जयो देवतुं । सुरनर सबकीरत कहे॥२॥
॥ * ॥श्री नेमनाथकी जान वर्णन लावणी॥ॐ॥ ॥॥ नेमकी जान बनी जारी । देखनकुं आये नर नारी (ए आंक णी) अनंता घोडा ओर हाथी । मनखरी गिनती नहीं आती। ठंठ पर धजा जो फरराती । धमकसे धिरती थरराती ॥दोहा॥ समुद्र विजयका लामला। नेम गर्नुका नाम । राजुलदेकुं आये परणवा । नग्रसेन घर ठग म । प्रसन नई नगरी सब सारी । नेमकी जान वनी जारी॥१॥क मुंबल वाघा अंति जारी । काने कुंमल बिहे न्यारी । किलंगी तुररा सुख कारी । माल गले मोतीयनकी डारी ॥दोहा॥ काने कुंमल जग मगे। शीश मुगट फलकार । कोमि जानुकी करुं नेपमा । शोना अधिक अपार वाज रह्या वाजा टंकसारी ॥ नेम०॥२॥ बूट रही ननकी गहराई । ब्या हमें आये बडे जाई । रोखे राजुलदे आई । जानकुं देखी सुख पाई॥ दोहा॥ न्यसेनजी देखकें । मनमें करे विचार । बहोत जीव करि एका। वामो नरयो अपार । करी सब नोजनकी त्यारी ॥ नेम० ॥३॥ नेमजी तोरण पर आये । पशु जीव सबही कुरलाए । नेमजी वचन फरमाये । पशु जीव कायेकू लाये ॥दोहा॥ याको जोजन होवसी । जान वासते एह । एह बचन सुनी नेमजी । थर थर कांपे देह । जावसें चढगये गिर नारी ॥ नेम०॥४॥ पीनेसुं राजुलदे आई । हाथ जब पकड्यो दिनमां हीं। कहां तुं जावे मेरी जाई । और वर हेरं मुकताई ॥दोहा॥ मैरे तोवर अकही । होगया नेम कुमार । ओर जुवनमें वर नही । कोटी करो बिचार । दीवा जद राजुलने धारी॥नेम०॥५॥ साहेल्यां सबही समजावे । हिये राजुलके नहीं आवे । जगत सबो दरसावे । मेरेमननेम कुमर जावे । दोहा ॥ तोड्या कंकण दोरमा । तोड्या नवसर हार । काजल टीकी पान सो पारी । त्याग्यो सब सणगार । सहेल्यां सबही बिलखाणी ॥ नेम० ॥ ६ ॥