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बारै व्रतकी पूजा.
६७७ सु० ॥ ४॥ बसुनरेसर वृथा रचिनें । लह्यो कुगति कचोलरे । पुतीय व्रत रस राग भैरवी । कुशलसार विमोलरे। बालाकुश सु० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ दूहा॥ जगदाधार जिनंदने । पूजौ वासरसैण । शिववनिता वस कीजिये। पूजा त्रयतम एण ॥१॥राग गरबो ॥ नवि चतुर सुजाण परनारी सुं प्रीत मी कबहुन कीजियै ॥न । ए चाल ॥ नविनाव धरी नवसागर निस तार क जिनपति सेवियै ॥ज०॥टेरे ॥बावनाचंदन खंमन करियै । तेहमां वलि कुंकुमरस जरियै । मृगमद परिमलता अनुसरियै ॥ नवि० ॥१॥ कंकोल सुवासित वलि कीजै। तिम विवध कुसुम रस कस दीजै । ए चूरण विधि निज वसकीजै ॥ नवि० ॥ २ ॥ इम वासरसैं जे जिन पूजै ॥ तिणसैं स विकरम सबल धूजै॥ सुखसंपति जायन घर दूजै ॥ नवि० ॥ ३ ॥ सुर किंनर नर सासन धारै । विनसमस्यां सहुसंकट वारै । ए पूजन मनवंबित सारै ॥ वि०॥ ४॥ विमला कमला सबला पावै । जे प्रजुगुण गण नावन जावै । इम चंदकपूर सुजशगावै ॥ वि०॥५॥ इति काव्यं ॥ मृगमदां वर घश्रण मिश्रित । वरवरास सुचंदन संस्कृतैः । रचतियो जिन पूजन मंजसा । सलनते निवृतिं किलवासकैः॥क्षी श्री परमात्मने अनंतानंत ग्यानसक्तये । जन्मजरामृत्यु श्रीमद० मृषावाद विरमण व्रत उपदेशकाय वा सपै यजामहेस्वाहाः । इति तीसरी मृषावाद व्रत पूजा ॥३॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥अथ चोथी अदत्तादांन व्रते पुष्प माल पूजा॥ॐ॥
॥ * ॥ व्रततृतीय हिवसांजलो। नाखै जगतजिनंद।स्तेयकरण सब सुख हरण ।अष्टकरम दलकंद॥१॥राग सोरठ ॥हांहोरे देवा । बावन चंदन पसि कुमकुमा। चूर० । ए चाल ॥ हांहोरे वाला । परधनहरण गमन करो। धरि त्रिकरण शुचविलाशए । हांहोरेवाल्हा । ए नवजल जलधर समो । व लि समकित वृंद विनास ए। व० ॥१॥ हांहोरे बाल्हा ॥ कनक रजत माण धातुनो। जल थल खज पशु पटकूलए । ज०॥ हांहोरे बाल्हा ॥ इमतनु थू ल जगतिन्नरया। लही सकल पदारथ मूलए । ल० ॥ २॥ हांहोरे बा व्हा। कुमति पुरति रमणी तणो । वै सदन ए चोरीनो कर्मए । ०। हांहोरे बा० विपद जलधि पिण जाणियै । सचपल थई नासैधर्मए । स०॥ ३ ॥