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नवपद चैत्य, स्तवन, थुई. ३२१ ॥३॥ गुण उत्तीसे सोनता। सुंदर सुखकारीरे लो। (अ० सुं० ) आ चारज तीजै पदै। वं अविकारीरे लो। ( अहोवं० ) ॥ ४ ॥ आगम धारी नपशमी। तप पुविध आराधीरे लो। ( अ० त० ) चोथै पद पाठ क नमो। संवेग समाधीरे लो। अ० सं० ) ॥ ५॥ पंचाचार पालणपरा पंचाश्रव त्यागीरे लो। (अहोपं० ) गुण रागी मुनि पांचमें । प्रण, वम जागीरे लो। (अ० प्र०)॥६ ॥ निज परगुणने नेनखै ॥ श्रुत श्रक्षा
आवै रे लो । (अ० श्रु०) है गुण दरशण नमो। आतम शुन्न पावै रे। (लो० अ० आ०)॥७॥ ग्यान नमो गुण सातमें । जे पंच प्रकारे रे लो० ( अ० जे० ) लोकादिक षद द्रव्यना सहुन्नाव विचारैरे लो (अ० स० )॥ ८ ॥ आठमें चारित्र पद नमो । परनाव निवारी रे (लो० अ०प० ) खंत्यादिक दस धर्मनो। जेह छै अधिकारी रे लो । (अ० जे०)॥९॥ नवमें वलि तपपद नमो । बाह्याभ्यंतर दैरे लो० । (अ० बा० ) बांध्या काल अनंतना।जे कर्म न दे रे लो। (अ० जे० ) ॥१०॥ए नवपद बहुमानथी । ध्यावै शुन्न नावै रे लो । (अ० ध्या० ) नृप श्री पालतणी परे । मन वंचित पावरे लो। ( अ० म० ) ॥ ११ ॥
आसू चैत्रक माशमां । नव आंबिल करियैरे लो। ( अ० न० ) नवनेली विधियुत करी। शिव कमला वरियैरे लो। (अ०शि०)॥ १२ ॥ सिध चक्रनी बहुपरै । वर महिमा कीजैरे लो। ( अ० व० ) श्री जिनलान कहै सदा । अनुपम जश लीजैरे लो०। (अ० अ०)॥१३॥ इति०॥ * ॥
॥ * ॥ पुनःनवपद स्तवन लि० ॥ॐ॥ ॥ॐ॥ (राग मारु)॥ तीरथनायक जिनवरू जी । अतिसय जास अनूप । सिघ अनन्त महागुणी जी । परमानंद सरूप । (विक मन धारज्योरे)॥१॥धारज्यो नवपदध्यान (न० श्री आचारज गणधरूरे । गुण उत्तीश निवास। पाठक पदधर मुनिवरू जी। श्रुतदायक सुविलाश (०)॥२॥सुमति गुपतिधर सोनता जी । साधू शमतावंत । सम्यग् दर्शन सुंदरू जी । ज्ञान प्रकाश अनन्त । (ज०)॥३॥संबर साधना चरण ने रे। तप नत्तम विधि होय । ए नवपदना ध्यान थीरे। निरुपाधिक