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वसंत होली स्तवनसंग्रह
३९७ रण। ज्ञान बिमल नलसाइ॥ (आज०) ॥ १ ॥ बामानन्दन अतिगवि सुन्दर । महिमा वरणी नजाई । दीन दयाल दयाकर दीजै । आनन्द हरख सवाई॥आ०॥२॥ इति पदम् ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ पुनः होरी॥ॐ॥ . ॥॥ मनमोहन गजगतकी गामनी । आज चली गिरनार कामिनी ॥ (म० ) ( आंकमी ) ॥ सुंदर रूप बनाय सखी सब । सिखरसेल जेसें चमके दामनी ॥ ( म०)॥१॥ नेम प्रजुको व्याह मनायो । मोसें प्रीति लगाइ जामनी ॥(म०)॥तोरण आय चले मोह ोमी । कौन चूक मोपे काढी जामनी ॥ (म०)॥२ ॥ मेंन तजंगी नव नव कैरी । प्रीत बनी जैसी इंदु दामनी॥ (म०)॥३॥राजुल पहली प्रीतम सेती। वा लकहै नई मुगति गामनी ॥ (म.)॥४॥इति पदम् ॥ * ॥....
॥ ॥ पुनः होरी॥॥ ॥ * ॥ रंग लग्यो गुरु ज्ञान । होरी चेतन खेलै । (रंग) शील सुरंगी चीरमंगाये। पहिरेआप सुजान ॥ ( हो° ) ॥ पर मन्दिर तज अविचल लीजै। धर्म दया धर ध्यान ॥ ( हो० ) ॥ हिल मिल आप परमरस चाखे सुमति सखी पहिचान ॥ ( हो० ) ॥ज्ञान गुलाल लाल रंग लागे। सानै अदनुत वान ॥ ( हो ) ॥ सुमति अबीर नडाय जगतमें। बैठे शिव पुर थान (हो०)अनुन्नव राग मगन गुण गावै । तप जप सुन्दर तान (हो०) ऐसा खेल नविक जन धारै । बंचित पावै दान (हो.) इति पदम् ॥१॥
॥॥ पुनः होरी (ताल यत् )॥ ॥ ॥ ॥ चिदानन्द खेले फाग। हो हो होरी आई ॥ मन मृदङ्ग बजे त न मांहि । गावत आगम राग ( हो ) ॥ ज्ञान गुलाल सदा रङ्ग लागे खेलत सुनत सुहाग ( हो ) समकित केशर चीर रङ्गाउ। पहिरो मन वेराग (हो०)॥ लाख चौराशी रामत गंमी । च्यारूं गतिसें नाग (हो०) अविचल सुख पंचम गति पावै। योग यतन कर जाग ॥ ( हो ) ऐसा खेल नविक जन धारै । पावै जव दधि पार ( हो० ) चेतनता सुध होय जगत में । समकित के रङ्गलाग ( हो ) ॥ ॥ इति पदम् ॥॥