________________
२७२
रत्नसागर. सरदहणाबे नतीए ॥१०॥ मिश्र गुणालय मांहि । मरण लहै नही । आ नवंबंध नपमै नवो ए। कैतो लहै मिथ्यात । के समकित लहै । मतिसर खी गति पर जवै ए ॥ ११ ॥ च्यार अप्रत्याख्यान । नदय करी लहै । म तिविण किहां समकित पणो ए। ते अविरत गुणगण । तेतीस सागर । साधिक थिति एहनी नणो ए॥ १२॥ दया नपशम संवेग । निरवेद आ सता। समकित गुण पांचे धरैए । सहु जिन वचन प्रमाण । जिन सास न तणी। अधिक २ नन्नत करै ए॥१३॥ केईक समकित पाय । पुदग ल अरधतां । नत्कृष्टा नवमें रहै ए । केईक नेदी गठि । अंतर महुरते। चढते गुण सिवपद लहै ए ॥१४॥ च्यार कषाय प्रथम्म । त्रिणवलि मोह नी। मिथ्या मिश्र सम्यक्तनीए । साते प्रकृतिजास । परही उपसमें । ते नपसम समकित धणी ए ॥ १५ ॥ जिण साते क्य कीध । ते नर वायकी । तिणहीज नव सिव अनुसरैए। आगलि वांध्यो आन । तातें तिहां थकी । तीजै चोथै नवतरै ए ॥ १६ ॥ (ढाल ४) इणपुर कंबल कोइन लेसी ॥ ए चाल ॥ ॥ पंचम देसविरति गुणगण । प्रगटै चनकमी प्रत्याख्यान । जेण तजै बावीस अन्नन् । पाम्यो श्रावकपणो प्रतद ॥ १७ ॥ गुण इक वीस तिके पिण धारै । साचाबारै ब्रत संनारै । पूजादिक षटकारज साधै। इग्यारै प्रतिमा आराधै ॥१८॥ आरत रोद्र ध्यान हुवे मंद । आयो मध्य धरम आनंद । आठ बरस कणी पुवकोम। पंचम गुण ठगणे थिति जोम ॥१९॥ हिव आगै साते गुणथान । इक २ अंतर महुरत मान । पंच प्रमाद वसै जिण ठाम । तेण प्रमत्त हो गुणधाम ॥ २०॥ थिवर कलप जिन कलप आचार । साधै षट् आवस्यक सार । नद्यत चोथा च्यार क षाय । तेण प्रमत्त गुणगण कहाय ॥ २१ ॥ सूधो राखै चित्तसमाधै । धर मध्यान एकांत आराधै। जिहां प्रमाद क्रिया विधनासै । अपरमत्त सत्तम गुण नासै ॥ २२ ॥ ( ढाल ५) नदी यमुनाकै तीर नमै दोय पंखीया ॥ ए चाल ॥ ॥ पहिले अंस अहम गुणगणा तणें । प्रारंने दोयश्रेणि संखेपै.ते गणें । नपशम श्रेणि च? जे नरहुवे उपसमी। पक श्रेणि काय क प्रकृति दशक्य गमी ॥ २३ ॥ तिहां चढता परिणाम अपूरब गुण ख