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१४ गुणस्थान स्तवन.
ર૭રૂ हैं। अहम नाम अपूरब करण तिणें कहै । सुकल ध्याननो पहिलो पायो आदरै। निरमल मन परिणाम अमिग ध्याने धरै ॥ २४॥ हिव अनिवृत्त करण नवमो गुण जाणियै । जिहां नाव थिर रूप निवृत्ति न जाणिये । क्रोध माननें माया संजलणा हणें । नदै नही जिहां वेद अवेद पणों ति लों ॥२५॥ जिहां रहै सूखम लोन कांइक शिव अनिलखै । ते सूखम संपराय दशम पंमित दखै । संत मोह इण नाम इग्यारम गुण कहे । मोह प्रकृति जिण गम सहु नपसम लहै ॥ २६ ॥ श्रेणिचढ्यो जो काल करै किणही परै । तो थायै अह मिंद्र अवर गति नादरै । च्यारवार सम श्रेणि लहै संसारमें। एक नवै दोय श्रेणि अधिक न हुवै किमें ॥ २७॥ चढि इग्यारम सीम समी पहिलै पमै । मोह हुदै नत्कृष्ट अरध पुगदल रमै । खिपक श्रेणि इग्यारम गुणगणो नही । दशम थकी बारम्म चढे ध्याने रही ॥ २८ ॥ ( ढाल ६ एक दिन कोई मागध आयो पुरंदर पास)॥ए चाल ॥ ॥ खीण मोह नामें गुण गणो बारम जाण । मोह खपायो नमो आयो केवल नाण । प्रगट पणें जिहां चारित अमल यथा प्रख्यात । हिव आगै तेरम गुणगण तणी कहै वात ॥ २९ ॥ घातीय चौकमी दयगई र हीय अघातीय एम । प्रकृति पच्यासी जेहनें जूना कापम जेम । दरसण झान वीरज सुख चारित पंच अनंत । केवल ज्ञान प्रगट थयो विचरै श्री जगवंत ॥३०॥ देखे लोक अलोकनी गनी परगट वात । महिमावंत अ ढारे दूषण रहित विख्यात । आठेवरसे कणी कही इक पूरब कोमि । नक ष्टी तेरम गुण ठाणे ए थिति जोमि ॥ ३१ ॥ कर सेलेसी करण निरूध्या मन वच काय । तेण अयोगी अंत समइ सहु प्रकृति खपाय । पांचे लघु अक्रर कचरतां जेहनो मान । पंचम गतिपामें सिवपद चनदम गुणथान । ॥३२॥त्रीजै वारमें तेरमें माहै न मरै कोइ । पहिलो बीजो चोथो पर जव साथे होइ। नारक देवनी गतिमाहे लाने पहिलाच्यार । धुरला पांच तिरी मांहिमणुए सर्ब विचार ॥३३॥ (कलश)॥इम नगर बाहम मेरुमं मणा सुमति जिण सुपसानले । गुणगण चवद विचार वरण्यो नेद आग ननें नलै। संवत्त सतरैसै उत्तीसै श्रावण वदि एकादसी । वाचक विजय श्री