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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
टुंक जरी । मोटी तिहां इकवीसरे ॥ ०॥ सेत्रुंजय गिरि टुंक ए पहिलं । ना म नमो निसदीसरे ॥ न० श्री०४ ॥ सहस अधिक मुनिवर साथे । बाहु बली शिवठामरे ॥ ज० ॥ तिणकारण ए गिरवर कहियै । त्रीजो मरुदेवीनामरे । ० श्री० ५ ॥ पुंरीक गिरि नाम एचोथुं । पांचकोमि मुनि सिधरे । ० । पांचमी ट्रंक रेवतगिरि कहिये । तिए ए नाम प्रसिधरे ॥ ०॥ श्र०६ ॥ विम लाचल सिवराज नागीरथ । प्रणमीजै सिद्धक्षेत्ररे । न० बरीपाली इगिर ने टो । करियै जन्म पवित्ररे । न० श्री० ॥ ७ ॥ पूजाकरी प्रजुना गुणगावो । सा धोका अनेक ० पुंरुर गिरना गुणगण गातां । निरमल आत्म विवेकरे । ० श्री० ८ ॥ देवकीनंदन पूजो नावै । थूलभद्र मुनिरायरे । जन सुमतिमं जिनराज पसायै । दिन २ आणंद थायरे ॥ प्र० । श्री० ९ ॥ इति काव्य पूर्ववत् ॥ श्री श्रीपरमात्म• ॥ इति गुलाब जल पूजा ॥ ॥ ॥
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॥ ॥ अथ इग्यारमी वस्त्र युगल पूजा ॥
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॥ दूहा ॥ प्रनु पूजो इग्यारमी । होमयुगल लेई सार । निरमल गुण धारी करी । पूजो जगनरतार ॥ १ ॥ * ॥
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॥ * ॥ राग घाटो ॥ मेरोमन वसकरलीनो । जिनवर प्रजुपास ॥ मे० ॥ गिरवर मंत्र्यादि। मुऊमनथांसुंलागो ॥ मु० ॥ विमलाचल तीरथराजे । तीन नुवन प्राहाद ॥ मु० ॥ १ ॥ सूरत मोहनीलागे । जागै प्रीत अनाद ॥ मु०॥ सुरनर वंदना | पावै प्रनू परसाद ॥ मु० || २ || देश देशका जात्री
| पावे हर अपार ॥ मु० ॥ मरु देवी नंदन वंदो । गावो गुण गण सार मु० ॥ ३ ॥ हेमनी चोरी कीनी । ए आलोयण तास ॥ मु० ॥ चढ चैत्री पूनम जावै । करै इक उपवास ॥ मु०४ ॥ वस्त्रनीचोरी रे जेणें । कीनी नो नावं ॥ मु०॥ वारसात बिल करिये। नवियण सुत्र मन जाव ॥ मु० ॥५॥ रतननी चोरी कीनी । तेजन सुध इमहोय ॥ मु० ॥ गिरिपर तपस्या कीजै ॥ प्रातम निरमल होय ॥ मु० ॥ ६ ॥ पित्तलादि चोरी कीनी । ते सुद्ध थायेकेम ॥मु०॥ पुरम सात करिये । धरिये मनमें प्रेम || मु० ॥७॥ मोतीनीचोरी जुकीनी ।
बकर जविती ॥ मु०॥ धानादि चोरी कीनी । दैते वस्तु प्रवीण ॥८ ॥ देवादिधन जो वां । तो सुधथाये एम ॥ मु०॥ अधिको वित्तजोखरचे । मुनि