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श्रीसिधगिरी निनांगूं प्रकारी पूजा. ७४९ पोषैवहुप्रेम ॥ मु०॥९॥ चौपद चौरीकीनी। देते वस्तुनोदान ।मु०॥ सरधासु तपस्या कीजै ॥ दीजै मुनि सनमान ॥ मु० ॥१०॥ पुस्तक पारका देखी। लिखै जो आपणो नाम ॥ मु०॥ षट्मासी तपस्या कीजै। सामायकतिणगम ॥ मु० ॥ ११ ॥ कन्या परिव्राजका जाणो । सधव अधव गुरुनार ॥ ॥ मु० ॥ तिन संग व्रत जो नाजै । उम्मासी तपसार । मु० ॥ १२ ॥ ॥ गो स्त्री वालक कृषिनी। आसातनाजेकीन ॥ मु०॥ वस्त्र पात्र मुनिने दीजै। जावधरी लय लीन ॥ मु०॥१३ ॥ श्रीजिन पूजन कीजै। होम युगल अतिचंग ॥ मु॥ इशविध पूज रचावो। सुमतिक है मनरंग ॥ मु०॥ १४॥ इति ॥ काव्यं ॥ देवा मुरेंद्र नरनागरमर्चितेभ्यः । पापः प्रणासकर नव्यमनोहरेभ्यः। घंटा ध्वजा दिपरिवार विनूषितेभ्यः। नित्यंनमो सिधगि रेंद्र जिना लयेभ्यः ॥ १० ॥ नझी श्री परमात्मने नंतानंत झान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमजिनेंद्राय वस्त्रं यजामहे स्वाहाः ॥११॥
॥॥अथ कलश ॥॥ ॥रागधन्यासिरी ॥ तेज तरण मुख राजै॥ एचाल ॥ ॥प्रनुजीकी पूजरची सुखकाजै । हांपो सुख काजै ॥ श्रीसिघाचल गिरवर ऊपर । मंमण आदि विराजै। नाननृपति मरुदेवीके नंदन । दरशण सुंदुःख नाजै॥हां० प्र०॥१॥वीकानेर नगर अतिसुंदर । मरुधर देश विराजै । श्रीजिन सौनाग्य सूरि पटोधर । सकल गुणेंकरी गाजै ॥ हां० प्र० ॥२॥ श्रीजिन हंससूरि खरतरपति । गुण गिस्वा गुरुराजै । प्रीत सागर गाणि सिष्य सुवाचक । अमृत धर्म सुगजै । हां० प्र० ॥३॥ तमु सेवक पाठक पदसोहै । दमा कल्याण गणि राजै । तमु चरणांबुज सेवक अहनि स। धर्मविसाल विराजै ॥ हां० प्र० ॥ ४॥ सुमति मंमण ए गिरनी पूजा। रचिय संघ सुखकाजै । कुशल करण सहू मुनिवरकी। प्रेरणया सुखका जै॥ हां० प्र०॥५॥ चूंपधरी चोखै चितचाहै । लिखी सकल सुन्नका संवतसय नगणीस तीसमें । पूजरची हितकाज। हां० प्र० ॥ ६ ॥ जेठसुदी तेरस रविवारै । सुणतां सहु सुःखनाजालावधरी गिरनां गुणगाया।