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रत्नसागर.
१६ जेढ़ हुय ( यह ) १६ नेद कषाय के दूर करनें कों । प्रथम एकाशणो १। निवी २ । बिल ३ । उपवास ४ । इसी अनुक्रमसें १६ दिन तप करे । स्तवन सुर्णे । तप पूर्ण होणेंसें । यथाशक्ति उद्यापन करे ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ (४५) पैंतालीस आगम तप विधिः ॥
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॥ ॐ ॥ शुभ दिन गुरूके पास पेंतालीश आगम तप ग्रहण करे । २ दूज । ५ पांचम । ११ इग्यारस | ( इत्यादि ) ग्यान तिथिकै दिन । अनु 1 क्रम से उपवाश (वा) एकाशणा करे। ( जिस दिन ) जो श्रागमको तप हो य । उसी आगमको गुणनो करै । सिद्धांत लिखावै । सिद्धांत सु । प ढनें वालुंकों सहाज्य करे। अपने शक्तिमाफक । सर्व ठिकाणें ज्ञानकी वृद्धि करे । (प्रणमुं श्रीगुरुपाय ० ) इत्यादि ज्ञानके स्तवन सुणें । ऐसें (४५) दिन तपस्या पूर्ण होनेंसें । पैंतालीस (४५) आगम की पूजा करावै । मं दर पोशाल में ग्यानका उपगरण चढावै । (इत्यादि) अत्यन्त खुशी होके (४५) आगमका आराधन करै । यह तपश्या के करनेसें । मूरखपणा दूर होके । शुद्ध आत्म ज्ञानकी प्राप्ति होय ॥ ॐ ॥
॥ ॐ ॥
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(४५) (आगमके नामलिखते हैं ) ॥ * ॥ ॥ * ॥ प्रथम इग्यारै अंगको गुणनो ॥ * ॥
१ ॥ श्रीमचाराङ्गजी सूत्राय नमः ॥ १ ॥ २ ॥ श्रीसुयगमांगजी सूत्राय नमः ॥ २ ॥
३ ॥ श्री ठाणांगजी सूत्राय नमः ॥ ३ ॥ ४ ॥ श्रीसमवायांगजी सूत्राय नम ॥ ४ ॥ ५ ॥ श्रीभगवतीजी सूत्राय नमः ॥ ५ ॥ ६ ॥ श्रीज्ञाताधर्मजी सूत्राय नमः ॥ ६ ॥ ७ ॥ श्री पाशग दसाजी सूत्राय नमः ॥ ७ ॥ ८ ॥ श्रीमन्तम दसाजी सूत्राय नमः ॥ ८ ॥ ९ ॥ श्रीअनुत्तरोववाइजी सूत्राय नमः ॥ ९ ॥ १० ॥ श्रीप्रस्नव्याकरणजी सूत्राय नमः ॥ १० ॥ ११ ॥ श्रीविपाकजी सूत्राय नमः ॥ ११ ॥