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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
मानंद । ए समकित घर श्रावक करणी । हरिणी जव मनरंग हे । विज यदेव जिन प्रतिमा पूजी । जीवानिगम नवंग हे ॥ श्री० ॥ १ ॥ सूरीयाज प्रनुपूजन करियो । राय पसेणी नृपांगहे । ग्याता अंगे दुपदि श्राविका । पूज्या जिन प्रतिबिंब । काल लगे जमसी जव वनमें । मन्दमती जयभ्रांत हे ॥ ( श्री० ) ॥ २ ॥ विष्णुमात तनुजात विष्णु नृप । विमल कुलांबर हंस हे । सकल पुरंदर अमर असुर गए । शिरो वरि प्रभु अवतंस हे इम सुरवरनी परि श्रावक जे । पूजै जिन नवरंग हे । ते शिव चंद्र परमपद हिस्यै । निश्चय करी नवरंग हे ( श्री ) ॥ ३ ॥ ॥ ( काव्यं ० ) सजिल ॥ १ ॥ तँ शी० श्री श्रेयांस जिनेंद्राय ॥ ॥ ॥ इति ॥ ॥ ॥ अथ (१२) बासुपूज्य जिन पूजा जि० ॥
॥ * ॥ (दोधक) ॥ * ॥ हिवबारम जिनवर तणी । पूजन करियै सार । नाव क्तियुत वि सदा । द्रव्यनक्ति चितधार ॥ १ ॥ ( राग ) सब पर ति मथनमुदार धूपं (एचाल ) ॥ * ॥ सकल जगजन करत बंदन | जय नंदन सामिरे (देवा) पुरित ताप निकंद चंदन । परम शिव पद गामिरे ( देवा ) ॥ १ ॥ ( सकल०) नृपतिवर वसु पूज्य नृपकुल । बिपिन नंदन जातरे (देवा) सुहरि चन्दन नन्द नन्दन । नन्द मदकिय घातरे ( देवा ) ॥ २ ॥ (स० ) वासुपूज्य जिणेंद्र पूजो । सकल जन महाराज रे । (देवा) करत नुति शिव चंद्र प्रजुए । निखिल सुर सिरताज रे । देवा । ( सक० ) ॥ ३ ॥ ( काव्यं ) सजिल● ॥ १ ॥ तँ ० श्रीमद्रासु पूज्य जिनेंद्राय वसु द्रव्यं ॥ ॥ इति श्रीवासुपूज्य जिन पूजा ॥ १२ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥ * ॥ अथ (१३) श्री बिमल जिन पूजा लि० ॥
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॥ ॐ ॥
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॥ * ॥ (दोधक ) ॥ * ॥ विमल २ जिन कर मुजै। मलिन करम क रि दूर । तेरम प्रजु रमियै सदा । मुऊनर मऊि गुणपूर ॥ १ ॥ * ॥ (राग) सिaar पद वंदोरे नविका । ए चाल ) ॥ * ॥ विमल चरण कज बंदोरे ! ( सूरीजन) विम० (वंदनसें आनन्दोरे । (सू०वि० ) जसु गणधर मुनिव रगण मधुकर । सेवत पद अरविंदो । श्यामा उदर सुगति मुगता फल | कृत वरमा नृप बंदोरे (सूरी ० ) ॥ १ ॥ सहु जग मंगल विमल करणकं ।