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शषिमंगल २४ प्रकारी पूजा. ६०७ ॥॥अथ (९) श्रीसुविध जिन पूजा लि०॥2॥
॥ ॥ (दोधक)॥ ॥ सुविध २ समरण थकी। कामित फल प्रक टाय । अतिह गहन संसार वनि । वहुल अटन मिट जाय ॥ १ ॥ १ ॥ (राग (चंपक केतक मालती ( एचाल (॥ * ॥ सुविध चरणकज वंदीय 'ए। (अश्यो०) नंदीय अति चिरकाल । सिव तरवारि निकंदीय । विधन कंद ततकाल ॥ १ ॥आज जनम सफलो भयो। (हाए सफ०) दीगे अनुदीदार । तनु मन हग विकसित नये । जिम कज लखि दिनकार ॥२॥ अमृत जलधर वरसीयो। ( हां अइ०व० ) नवि नर क्षेत्र मजार । दर्शन सुरतरु ऊगीयो। शिवफलनो दातार ॥ ( काव्यं ) सलिल । शी। श्रीमत्सुविधि जिनें वसु०॥ ॥ इति श्रीसुविध जिन पूजा ॥९॥ ॥ ॥॥ अथ (१०)श्रीशीतल जिन पूजा लि०॥॥
॥॥ (दोधक) मुझ तनु मन शीतल करो । श्रीशीतल जिनराय । तुम समरण जलधारसें । अंतर तपति पुलाय ॥१॥ (राग घाटो। दादा कुसल मुरिंद० इस चालमें) ॥ * ॥ मेरे दीनदयाल तुम नये सकल लो क प्रतिपाल । (आ.) सुणि शीतल जिनवर महाराज । चरण शरण धरयो प्रनुनो आज । (मेरे दी०) न नमुं सहु सविकारी देव । करिसुं चरणक मलनी सेव । ( मेरे०)॥१॥ जैसें सुरमणि करतल पाय । कुणल्यै काच शकल ननसाय । (मेरे०) तुम सम सुरवर अवरन कोय । हेर २ जग निरख्यो जोय ( मेरे०)॥२॥प्रनु दरसण जलधर घनघोर । लखिय नि रतकरे नविजन मोर (मेरे०) । पद शिव चंद्र विमल जरतार । अरज एह नरधरियै सार (मेरे०)॥३॥ (काव्यं) सलिल क्षी० श्रीमडी तल जिनेंद्राय वसु० ॥ ॥ इति श्रीशीतलजिनेंद्र पूजा ॥४॥
॥अथ (११)श्रीश्रेयांस जिन पूजा लि० ॥॥ ॥ ॥ (दोधक)॥ ॥ श्री श्रेयांस जिनेंद्रपद । नद उति सलिला धार । जे नेत्र मऊन करै । ते सुचि हुई विधुतार ॥ १॥ (राग) सोहम सुरपति वृषन रूप करि (इस चालमे) ॥ ॥ श्री श्रेयांस जिणेसर जग गुरु । इंद्रिय सदन सनंदहे । जसु वसु विध पूजनसें अरचो । नर धार पर