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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह. ॥ॐ ॥अथ (७) श्री सुपार्श्वजिन पूजा लि० ॥ * ॥
॥ ॥ (दोधक) * श्रीसुपार्श्व सुरतरु समो। कामित पूरण काज । नो नवियण पूजो सदा । वसु विध पूज समाज ॥१॥(राग कल्याण ) मेरा दिल लग्या जिने सरसें (ए चालं ) ॥॥ मेरी लगी लगन जिन वरसे ( मेरी० ) जैसे चंद्र चकोर जमरकी । केतकि कमल मधुरसे ( मेरी०)। एह सुपारस प्रनु नए पारस । गुण गण समरण फर से ( मेरी०) चेतन लोहपणो परिहरकै। हुयल्यै कांचन सरिसै॥१॥ (मेरी०) ए प्रल करुणा करकुं धरिल्यै । र जिम कमल नमरस (मेरी०) जे नवि जिनपद लगन धरै तमु । नही जय मरन असुरसै ( मेरी०)॥२॥ मात पृथवि तनु जात तनु द्युति । सम शुन्न कांचन सरसै ( मेरी०) कहै सिवचंद्र चित्त नित मेरो । रहो प्रनुपद लय नरसै ॥३॥ ( मेरी० ) (काव्यं ) सलिल० जी० श्रीमत्सुपार्श्वजिनेंद्राय ॥ वसुद्रव्यं० ॥ ॥ इति श्रीसुपार्श्वजिन पूजा ॥७॥ ॥
॥ ॥ ॥ अथ (८)श्रीचन्द्रप्रनु पूजा लि०॥॥ ॥ ॥ (दोधक)॥ * ॥ अष्टम जिनपद पूजिये । विविध कष्ट हरता र । अष्टसिधि नवनिधि लहै । जिन पूजन करतार ॥१॥ ॥ ( राग गुंम मिश्रित मल्हार) ॥ मेघ बरसै नरी कुसुम वादल करी। (ए चाल) परमपद पूर्व गिरिराज परि उदयलहि । विजित परचंद्र दिनकर अनन्ता। चंद्रप्रनु चंद्रिका विमल केवल कला । कलित सोनित सदा जिन महन्ता ॥१॥ (परमपद०)। कुमतिमत तिमिर जर हरीय पुन नूरि नवि। कुमुद सुख करीय गुण रयण दरिया । गहिर नविसिंधु तारण तरणि गुण । धारि जव तारि जिनराज तरिया । ( परमप० ) ॥ २॥ राखियै आज मोहि लाज जिनराज प्रनु । करण सुख चरण जिन सरण परीया । परम शिव चंद्र पदपद्म मकरंद रस । पान नित करण ततपर नरीया ॥ ३ ॥ ( पर० ) (काव्यं ) सलि । नक्षी श्रीमचन्दप्रनु जिनें० वमु०॥ ॥ इति श्री चंद्रप्रनु पूजा॥८॥ ॥