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मंगल २४ प्रकारी पूजा.
६०९ निज शासन नमचंदो। नदय यो जवि कमुद विकसिवा । वर गुण रयण समदोरे ( सूरी ० ) ॥ २ ॥ यदि जव बंदि हरण नवि चाहो । प्रनुवंदी चिरन दो । विमल चिदानंद वनमयरूपी । नित वंदत शिवचंदो रे ( सूरी० ॥ ३ ॥ ( काव्य ) सलिल ॥ १ ॥ ॐ ॐ ० । श्रीमत् विमलजिनें० ॥ ॥ इति श्रीविमल जिनपूजा ॥ १३ ॥ ॥ * ॥
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॥ * ॥ अथ (१४) श्रीमनन्त जिनपूजा लि० ॥ ॐ ॥ ॥ ॥ (दोधक ) ॥ ॥ हिव चवदम जिनपूजतां । हरियै विषय विकार । जो वियण सुणियै सदा । ए प्रभु सरणाधार ॥ १ ॥ पंचवरणी अंगीरची ० (ए चाल ) ॥ * ॥ पूजकरणी प्रजुनी पुरित निवारी । (दुरि ) (०) अनन्त तरणी हिमकिरण तरुणतर । किरण निकर जीताहे नारी । अनन्त नाणवर दरसण तेजै । प्रभुसु यशोदर है अवतारी ( पूज० ॥ १ ॥ लोका लोक अनंत द्रव्यगुण । पर्याय प्रगट करण हारी । तातै अन्वययु त जिन धरियो । अनंत नाम प्रति मनुहारी ( पूज० ) ॥ २ ॥ सिंहसेन नृप नन्दन वंदन करत इंद्र चंद्र सुखकारी । सादि अनंत जंग थिति धरियो । पद शिव चंद्र विजयधारी ( पूज० )|| ३ || ( काव्य ) सलिज । जी श्रीमच्चतुर्दश अनंत जिनें० वसु० ॥ ॥ इति श्री अनंत जिनपूजा ॥ १४ ॥ ॥ ॥ अथ (१५) श्रीधर्मजिन पूजा लि० ॥ ॥
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॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ जानु नूप कुल जानु कर । पनरम जिन सुर सार । सोजित सहुजग विपिन जन । हरख फलद जलधार ॥ १ ॥ ( राग ) धार समीरे यमुना तीरे । वसती वने वनमाली (ए चाल ॥ ॥ धर्म जिणे सर धरम धुरंधर | जगबंधव जगबाला। (में बारी जानं । जग० धरम ० ) । सुब्रता नंदन पाप निकंदन । प्रनुनये दीन दयाला ( में बा० | धर्म ० ) ॥ १ ॥ तु धीरज गुए निरखि अमर गिरि । लजि लीनो चला धारा । (मैंबा० ) जिन गंभीरता चमरसिंधु लखि । किय लोकांत विहारा । ( में० । धर्म ॥ २ ॥ एजिनचंद्र चरण रचनतें । लहि जिनपति अवतारा । ( मेंवा ० ) । करम वैरि दलकरि जवि जहिस्यो । पद शिव चंद्र उदारा। ( वा० धर्म ०)
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