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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह.
॥ ३ ॥ ( काव्यं ) संजिल चं० ॥ झी । श्रीप० श्रीमत धर्म जिनें० वसुद्र व्यं० ॥ ॥ इति श्री धर्मजिन पूजा ॥ १५ ॥ ॥
॥ ॥ अथ (१६) श्री शान्तिजिन पूजा लि० ॥ ॥ * ॥ ( दोधक) चिरा नयरे अवतरी । शांति करी सुखकार । मारि विकार मिटाय करि । नाम धरयो शांति सार ॥ १ ॥ * ॥ ( राग विनास ) नाव धरि धन्य दिन आज सफलो गिणं (ए चाल ) ॥ ॥ शांति जिन चंद्र निज चरणकज शरणगत । तरणि गुणधारि नववारि तारी । कुमत ज न विपिन जनि कुमति घन वृतनितति । वितिनि शितधार तरवारि वारी ॥ ( शांति ० ) । एक नव पद नजय चक्रधर तीर्थकर । धारिया वारिया विघन सारा । सकल मदमारिया विमल गुण धारिया । सारिया भक्ति बांबित अपारा ॥ ( शांति ० ) हरिण लांबन धरा वरण सुवरण करा । सुरवरा हितधरा गतवि कारा । मोहन धरणिधर गण हरण वज्रधर । कुमुद शिव चंद्र पद रजनि कारा ॥ ( शां० ) ३ ॥ झी श्रीप० श्रीमत् षोमशम शांति जिनेंद्राय वसु
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द्रव्यं ॥ * ॥ इति शांति जिन पूजा ॥ १६ ॥ ॥ ॥ अथ ( १७ ) श्रीकंथुजिनपूजा लि० ॥ ॥ ॥ ( दोधक ) सतरम जिनवर दीवसम । मऊि जव सागर जाए । क्ति युक्ति नित पूजयै । लहीयै प्रमल विना ॥ १ ॥ ॐ ॥ (राग ) अरिहंतपद नित ध्याइयै (एचाल ) ॥ ॥ कुंथुजिणंद गुणगाइये । ( वारि) मनमंत्रित फल पाइये रे । प्रनु समरण लय लाइये। ( वा० ) नवि जवत जि शिवजाइयैरे ( कुंथु० ) ॥ १ ॥ जवजल गत निज प्रातमा । (वा० ) करुणा र धरि ताइये रे । चरण करण उपयोगिता । (वा० ) ग्रहण करणकुं धाइये रे । ( वा० कुं० ) ॥ २ ॥ ए प्रभु दरसण जीवनें। (वारि ) अ जव रसनो दाइये रे । वर शिवचन्द्र विमल वधै । दिन २ सोन सवाइयै रे । ( कुं० ) ॥ ३॥ ( काव्यं ) सलिलचं । न झी श्रीप० । श्रीकुंथु जिनें० | वसु० ॥ ॥ इति कुंथुजिन पूजा ॥ १४ ॥ ॥
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॥ ॥ अथ (१८) श्रीअरनाथ पूजा लिं० ॥ ॥ ॥ * ॥ ( दोधक ) ॥ * ॥ जिनप्रढारमोध्याइये । नवियण चित्तमकार