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कृषीमंमल २४ प्रकारी पूजा. ६११ करण तीन इक करमुदा। प्रतिदिन जय जय कार ॥ १ ॥ ॥ ( राग वसंत) संग लागोही आवै । कुणखेले तोसुं होरी रे। संग० ( ए चाल ) ॥ ॥ निज बिमल भक्तिसें । अरजिनसें नितरमियै रे। ( निजबि० )। जिनगुण निजगुण तुल्य करणकुं । चंचल चित हय दमियै रे। (नि० ) ॥ १ ॥ सुमति युवति संयम नर धरिकै । कुमति नारि संग गमियै रे ॥ (निज० ) ॥ अनुन्नव अमृत पान करण तैं। विषय विकृत विष दमियै रे। (निज० अर० ) ॥ २ ॥ जिनवर संग रमण दवअनलै । पंक सघन वन धमियै रे । कहै शिवचंद्र जिनेंद्र रमणसें । अव रनमें नही नमिय रे ॥ ३ ॥ (निज० ) ( काव्यं ) सलिल चं०॥ ॥ज्ञी। श्रीमदष्टादश अ रजिनें। वसु०॥ ॥ इति अरजिनपूजा ॥१८॥ ॥ ॥ ॥
॥अथ (१९) श्रीमल्लिजिन पूजा लि०॥॥ ॥ ॥ ( दोधक )॥ ॥ नगुणीसम जिन चरणकज । जमर होय लयलाय । सेवै तमु जवि नमरता। अगणित तुरित विलाय ॥ १॥ ॥ ( राग ) मल्लिजिणंद नपगारी रे वाला। मल्लिजिणंद नपगारी ( हारे होरे वाला ) वारी जानं वारहजारी रे ( वा । मल्लिजि० ) कुंजनरेसर गग नांगणमें । सहसकिरण अवतारी रे ( वाला० म० ) ॥ १ ॥ पूरब जव षमित्र नरिंद प्रति । बोधि सिंधु नवतारी । वेदत्रयी चिरही तनु धारयो सकल संघ सुखकारी रे ( वाला मलि ) ॥ २ ॥ सकल कुशल हरि चंदन तरुवर । नंदनवन अनुकारी । संघ चतुरविध नूरिखचरगण । प्रणत चंद्र अनुहारी रे ( वा० मलि० )॥४॥ (काव्यं ) सलिल । नक्षी। श्रीमलिजिने जलं० ॥ ॥ इति मल्लिजिन पूजा ॥ १९॥॥ ॥ ॥अथ (२०) श्रीमुनिसुव्रतजिन पूजा लि० ॥ॐ॥
॥ ॥ ( दोधक ) पद्मोदर वर पद्मनद । गतपर पद्म समान। विश ति तम प्रनु पूजिये। केवल लछि निधान ॥ १ ॥ ॥ (राग गरबो) सु णिचतुर सुजाण । परनारीसुं प्रीतडी कबहुं न कीजिये (एचाल ) ॥ * ॥ सुणिसुव्रतजिनेंद्र सुनिजर धरि मुझपर वर दरसण दीजिये । प्रनु दरस प्रीति निरुपाधिकता। करियै लहियै शिव साधकता। तब तुरत मिटैसिव बाधकता।