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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह ॥ १ ॥ ( सुणि० ) अमृतमें साध्यपणो विलसैं । प्रनु दरसण साधनता नलसै । तदमुझमें साधकता मिलसै । ( मुणि ) ॥ २ ॥ निन्नादिकरण ता यदि विघटै । एकाधिकरणता यदि सुघटै । तद मुफ शिव साधकता प्रग है। ( सुणि ) ॥३॥ एकाधिकरणता मुझ करियै । जिन्नाधिकरणता परि हरियै । शिव चंद्र विमल पद तद वरियै ( सुणि )॥ ४ ॥ ( काव्यं ) सलिल । नक्षी० । बिंशतितम श्रीमत् मुनिसुब्रतजिनें० ॥॥ इति मुनिसुव्रत जिन पूजा ॥२०॥ * ॥
॥अथ (२१) श्रीनमि जिन पूजा ॥ ॥ ॥ (दोधक) अंतरवैरि नमाविया। तब लहियो नमि नाम । नवि यण ए प्रनु पूजसें । सरीय बंचित काम ॥ १॥ (राग) हमाए है सरण तिहारे । तुम प्रनु सरणागत तारे वारी० ( एचाल)।। श्रीनमि जिनवर चरण कमलमें । नयन नमर युग धरियैरे । तिण किय गुणमकरंद पानसें चेतन मद मत करियैरे। ( वारी ) चेतन मद मत करियैरे ( श्रीनमि० ) ॥१॥ एह चरण कज अह निश विकसै । पर कज निसि कुमलावैरे। (वारी पर) एन बलै बलि तुहिन अनलसें । अपर कमल बल जावै रे । (वारी० अप०.)॥२॥ ए पद कज गुन मधुरस पीवत । जीव अमरता पावै रे (वारी०)। अवर कमल रस लोनी मधु कर । कजगत गज गिल जावै रे (वारी०)॥३॥ परकज निजगुण लछिपात्रहै । पद कज संपद देवै रे। तातै पदशिवचंद्र जिणिंदके । अहनिाश सुर नर सेवैरे (वारी०)। श्री०॥ ४॥ (काव्यं ) सलिल०॥न श्री नमिजिने ॥॥ इति श्री नमिजिन पूजा ॥२१॥ ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥॥अथ (२२)श्रीनेमि जिन पूजा लि०॥॥
॥ ॥ (दोधक) बावीसम जिन जगगुरु । ब्रह्मचारी विख्यात । इण बंदन चंदन रसै । पाप ताप मिट जात ॥१॥ (राग रामगिरी ) गात्र लहै जिनमन रंग सुरे। देवा (ए चाल)। नेमि जिणंद नर धारीय रे (बाला) विसय कसाय निवारीय (वाला)। ( वारीय ) हारे(वाला वारीय)। ए जिन नेन विसारीयैरे॥१॥ जलधर जिम प्रनु गरजतारे (वाला) देशना