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मोहनगुणमाला, प्रथम नाग.
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हय स्त्य स्ल्य न्ल्य क्तय व्य स्व। ___च्छ्र न्त्र न्द्र ष्ट्र स्त्र प्र ज्व ष्टु त्त्व स्त्व १२३४५६७८९ (१० १०० १००० १००००) ॥ स्वस्तिश्री कृष्णब्रह्मस्था, एिवंद्राव्हा स्युश्च स्वस्करा, पृथ्वीभृहल्गु श्रेष्टात्म, व्रम्पास्ते हृद्यप्तिदा ॥ १॥
_ (शिक्षा वाक्य) ॥ गुरु शुश्रूषयाविद्या। पुष्कलेन धनेन वा । अथवा विद्यया विद्या। चतुर्थ नैव कारणं ॥ १ ॥ विनत्वंच नृपत्वंच । नैव तुल्य कदाचन । स्वदेशे पूज्यते राजा । विप्रान् सर्वत्र पूज्यते ॥ २॥ पण्डिते च गुणाः सर्वे । मूर्खे