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शालनद्रजी सिलोको, सारदमात. ५४५ मीरी देशना सूधी । सममा मन मांहे तुरत सुबुधी ॥ १३५ ॥ आयाघर पू ग आग्या ते मांग। लुलि २ मातानें पाए ते लागै । बंधन संकट सुं माता मुंकावो। कल्याण माहरो कोई जो चावो ॥१३६ ॥ कूडो कथन अब कीजें नवि माता । महाबीर वचनें अह्मे रंग राता । चारत्रिया होसां चित्तमांहे चोंका । धर्म करणी करनें गेमा जव धोंका ॥ १३७॥ आजूणा वचन नद्रा ते आखै । संजम लेसी ए सहू साखै । आमी अंतराय हुंस्याने होऊ । ब हिनोई सालो व्रतलो थे दोऊं ॥ १३८ ॥ सामग्री मेलै सहु साथे प्रा वै । गीत गुणवंती गुण बहु गावै । ढोल नगारा ढमके वजावै । प्रह की दरशण इण विधि पावै ॥ १३९ ॥ इरियावहि पडिक्कम पाप
आलोवै । मेल करमरा लागा सवधोवै । महाबीर स्वामी माथे कर दीधा साल धन्नारा कारज सहु सीधा ॥ १४० ॥ नोलामण देई नद्रा घरि
आवै । सुन्न मति देने गोरयां समझावै । तिन दिन सेती तपश्या ते साधे। भास खमणादिक करे मन बाधे ॥१४१॥ करमारी गोठ काटे बेन्नाई। किरीयारी कमणा राखे नही काई । अणसण करीने आऊखो पावै । सर्वा रथ सिधे वासो सुख पावे ॥१४२॥ महाविदेह मानव जव लहिसी। करणी कर आठे करम ते दहसी। सुपसा ए दांन सहु कारज सरसी । सालो बहिनोई दोनुं शिव बरसी ॥१४३॥ सालनद्र धन्नो साधु कहाया। प्रहसम कठे प्रणमुं ते पाया। गुण तिणांरा नवि जन गाया। मन सुध समरयां मुक्ति दे माया॥१४४॥ मुहता महाजन मोटा मति धारी । देवी धर दीपे गांव गुण कारी । मोटी महमाई थान विराजै । गया तिणरी इधकी ते गजै॥ ॥१४५॥ संवत सतरै इक्यासी वरसै । चौमासौ कीधो चितचूंप हरखै । खे मकीरतरी साख सवाई । तिणरा संतानिक वाचक वरदाई ॥१४६ ॥ सो म हरखनामें श्रमण कहीजै । लक्ष्मी समुद्र पाटे स लहीजै । गणी कनक प्रिय गुरु सुपसाया । गुण तिणरा में सिंहा मुनि गाया ॥१५७ ॥ इति ॥ ॥॥अथ श्री शांतिजिन वृद्धस्तवन लि॥॥
॥ सारद मात नमुं शिरनामी । हुंगानं त्रिनुवनके स्वामी । शांतिज शांति जपै सबकोई । त्यां घर शांति सदा सुख होई ॥१॥ शांति जपीनें
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