________________
४८७
वैराग्य लावणी संग्रह. सकतावत चंमावत बोले । हमही नोकर ननहींका । हीपति वाकू हा थ जोमे । तीन जुवन शिर हे टीका ॥ सु० ॥ १ ॥ स्वर्ग मृत्यु पाताल सबेही । सुर नर वांकू ध्यावत हे । इंद्र चंद्र मुनि दर्शन आवे । मन की मोजां पावत हे ॥ सु० ॥ २ ॥ गया राज ननहींसें आवै । निधनिया कू धन देवे । बांऊ खिलावे सुंदर लमका । सदा सुखी जेप्रनु सेवे ॥ सु० ॥३॥तारे जिहाज समुद्रयें जइनें । रोग निवारे नव नवका । नूप नुजं गम हरि करी नदीयां । चोरन बंधन अरि दवका ॥ सु० ॥ ४ ॥ धौ धों धौ धौ धौंसा बाजे । दशो दिशामें हे मंका। नान तांतीया नहीं जलाइ। मत बतलावो गढ बंका ॥ सु० ॥ ५ ॥ रानाजीके कमरावकी । मानत नांहीं ये बातां । थारा किया थेहीज पावो । में नहीं आई थां साथां ॥ सु० ॥ ६ ॥ मूंब मरोडे चढे अनिमानें । जहेर नरया हे निजरूंमे । रुपनदेव है साहेब सच्चा । देख तमासा फजरुंमें ॥ सु० ॥ ७ ॥ मयाराम सुत नणे मूलचंद । बड़े सितांबर तुम देवा । फोज विखरगइ घर घर घोडा । ल जाराखो तुम देवा सु०॥८॥ ॥ ॥
॥ ॥ ॥ ॥ वैराग्य लावणी लिख्यते॥॥ ॥ ॥ जब तन दोस्ती है इह मस्ती । काया मंगलकी । सासो स्वा स समरलै साहिब । आन घटै दिलकी ॥ १ ॥ ( खबर नहीं है जुगमें प लकी। सुकृत करणा हो सोकरलै । कुण जाणे कलकी ) ( ख ) तारा मंगल रवि चंद्रमा । सबही चलाचलकी । दिवस च्यारका चमत्कार है । वीजलियां जलकी ॥ ( ख० ) ॥ २॥ यो जग है सुपर्ने की माया। नेस बूंद जलकी । विनस जावतां बेरन लागै। नियां जाय खलकी॥ (ख) ॥ ३ ॥ हंसाया देहीमें जब लग । खुसीहै मङ्गल की। हंसा गंम चल्या जब देही। मिटिया जंगलकी ॥(ख०)॥४॥ मन मावत तन चंचल हस्ती मस्ती है बलकी । सदगुरु अंकुश दीया आनकै । वातां नई सलकी॥ (ख०) ॥५॥ मात पिता सुत बंधव नाई। सब जन मुतलबकी । काया माया स बेकारमी । ए तेरै कब की ॥ ( ख ) ॥ ६ ॥ठ कपट कर माया जो मी । कर वातां जलकी । बोळकी गांठ बंधी शिर तेरै । कैसें होय हलकी