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'रत्नसागर
॥ पांच प्रतिक्रमणसूत्र विधि ॥
श्रीपंचपरमेष्टिने नमः ॥ णमो अरिहंताणं ॥ णमो सिद्धाणं ॥ णमो आयरियाणं ॥ णमो नवज्जायाणं ॥ णमो लोए सबसाहूणं ॥ एसो पंच मक्कारो ॥ सवपाव प्पणासणो ॥ मंगखाणंच सवेसिं ॥ पढमंहवइ मंगलं ॥ १ ॥ पद ९ ॥ संपदा ८ ॥ अक्षर ६८ ॥ गुरु ७ ॥ लघु ६१
॥ अथ सकल तिर्थंकर नमस्कार लि० ॥
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॥ ॥ श्रीइष्टदेवाय नमः ॥ ॐ ॥ जयनसामिहि ॥ २ ॥ रिसह सेत्तुं वज्र्जित पहू नेमिजिए । जयन बीर सच्चवरमंगण । नहि मुणि सुवय । महुरिपास दुह पुरि खंमण । वर विदेहजि तित्थयर | चिहुँ दिसि विदिसि जंकेवि । ती प्राणाय संपयं । वपुं जिण सब्बेवि ॥ २ ॥ कम्मभूमिहि ॥ २ ॥ पढम संघयण नक्कासन सत्तरिसन । जिणवराण विहरंतलन्नइ । नवकोडी के लिए । कोडसहस नवसाहु संपय । संपइ जिणवर वीसमुणि । दुइकोडीवरणाणि । समणा कोडी सहसपुइ । थुणिजइ निच्चविहाण ॥ १ ॥ सत्ताणवइ सहस्सा । लक्खा बप्पन्न कोडी | चनसय बयासीच्या । तिलक्के चेइए वंदे ॥ २ ॥ वंदे नवकोडिसयं । पणवीसंकोडि लक्खतेवन्ना । अठ्ठावीस सहस्सा चनसय अठ्ठासिया पडिमा ॥ ३ ॥ जंकिंचि नामतित्थं । सग्गेपायाले माणुसेलोए । जाइंजि बिंबाई । ताई सवाईं वंदामि ॥ ४ ॥ रामोत्थुणं अरिहंताणं जगवंताणं ॥ १ ॥ आइगराणं तित्थगराणं सयंसंवृद्धाणं ॥ २ ॥ पुरसोत्तमाणं पुरस सीहाणं पुरसवर पुंमप्राणं पुरसवर गंधहत्थीणं ॥ ३ ॥ लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपो गराणं ॥ ४ ॥