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श्रीदादाजीकी वृद्ध अष्टप्रकारी पूजा. ७८९ पाट । मिथ्या मत तम हरणकू । जव्य दिखावण वाट ॥२॥ सुस्थितमुप्रति वध गुरु । सूरि मंत्र को जाप । कोटि कीयो जब ध्यान धर । कोटिकगढ सुथाप ॥३॥ दश पूर्बी श्रुत केवली । नये वज्र धर स्वाम । तादिन तें गुरु गलको । वज्र शाख जयो नाम ॥ ४॥ चंद्रसूरि नये चंद्रशम। अतहि बुधि निधान । चंद्रकुली सब जगत में । पसरयो बहु विज्ञान ॥५॥वर्ष मान के पाट पद । सूरिजिनेश्वर नाश । चैत्य वाशि • जीत कर । सुविहित पद प्रकाश ॥६॥ अणहिलपुर पाटण सना । लोक मिले तिहां लद । खरतर विरुद मुधानिधि । फुलेन राजसमद ॥७॥अनय देव सूरि नये नव अंगटीका कार । थंनण पारस प्रगट कर । कुष्ट मिटावन हार ॥८॥ श्री जिन बचन सुरि गुरु । रचना शास्त्र अनेक । प्रतिबोधे श्रावक बहुत । ताके पह विशेष ॥९॥ हुंबड श्रावग वाघमी । अठारे हज्जार । जैन दया धर्मी किये । वरते जैजैकार ॥१०॥ दादा नाम विवात जस । सुर नर शेवग जाश । दत्तसरि गुरु पूजतां । आनंद हर्ष नल्लास ॥११॥ दिल्ली में पतसाहनो। हुकम गया शीश । मणिधारी जिन चंद गुरु । पूजो विस वावीस ॥१२॥ ताके पह परंपरा । श्री जिन कुशल सूरिंद। अकबर कू परचा दी। दादा श्री जिनचंद ॥१३॥ एसे दादाच्यार कू । पूजो चित्त लगाय । जल चंदन कुशमादि कर। ध्वज सौगंध चढाय ॥ १४ ॥ * ॥
॥ चाल दादा चिरंजीवो एदेशी ॥ : ॥ ॥ गुरुराज तणी पूजन कर नवि सुख कर मिलसी लढि घणी। ए आंकणी ॥ गुरु दत्तसूरिंद. जग सुखकारी । गुरु सेवगर्ने सानि धकारी । गुरु चरण कमलनी बलिहारी ॥ गु० १॥ शंवत इग्यारे वार शशी । वत्तीसे जनम्यां शुन्न दिवसी । श्रावग कुल हुंबडनें हुलसी॥गु०॥ ॥२॥ जसु बाउगसा पितु नाम नणे। वाहडदे माता हर्ष घणें । इकता लीसे दिवापन्नणे ॥ गु० ३॥ गुणहत्तरे वक्षन पाटधरी । गुरु माया बीजनो जाप करी । गुरु जग में प्रगटया तरणतरी ॥ गु० ४॥ मणिधारी जिन चंद नपगारी। जिन दत्त सूरिंद के पटधारी । नये दादा दूजा सुखकारी ॥ गु० ५॥राशल पितु देव्हण दे माता । श्री माल गोत्र बोधनशाता । दिल्ली