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॥श्रीः॥
रत्नसागर॥
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(वा) ॥मोहनगुणमाला॥
-digenorror॥प्रथम नाग॥
॥ मंगलाचरण॥ कारं बिंदुसंयुक्तं। नित्यं ध्यायन्ति योगिनः। कामदं मोक्षदं चैव । काराय नमोनमः॥१॥ ॥ॐकार नदार अगम्म अपार संसारमें सार पदारथ नामी, सिद्धि समृद्धि सरूप अनूपनयो सबही सिरभूप सुधामी, मंत्रमें यंत्रमें ग्रंथके पंथमें जाकुं कियो धुर अंतरजामी, पंचहीइष्ट वसे परमिष्ट सदा ध्रमसी करे ताहि सिलामी ॥ १ ॥ नमो निसदीश नमायकेशीश जपो जगदीश सही सुखदाता, जाकी जगत्तमें कीरति जागत नागतिहे सब ईति असाता इंद नरिंद दिणिंद फुणिंद नमाएहें ठंद आनंद विधाता, धोरी धरम्मको धीर धराधर ध्यान धरे ध्रमसी गुणध्याता ॥२॥
॥अथ गुरुमहमा नमस्कार॥ ॥सर्वारिष्टप्रणाशाय । सर्वानीष्टार्थ दायिने। सर्वलब्धि निधानाय । गौतमस्वामिने नमः॥१॥