________________
सचित्त चित्त सिझाय.
२९३
वदनी रे चारित चूकव्यो । सुखविलसे दिन रातोजी । इकदिन गोखैरे रमतो सोगटै । तब दीवी निज मातो जी ॥ ५० ॥ अरणक प्ररणक करती मायफिरे । गलिये गलिये मजारो जी । कहि कि दीठो रे माहरो अर जो । पूबै लोक हजारो जी ॥ ६ ० ॥ नतर तिहां थीरे जननी पाय न म्यो । मनमें लाज्यो तिवारोजी । धि धिग् पापीरे माहरा जीवनें । एहमें
कारज कीधो जी ॥ ७० ॥ गन घुखंतीरे सीला ऊपरै । प्ररणक अणसण कीधो जी । समय सुंदर कहै धनते मुनिवरू । मनबंबित फल सी धोजी ॥ ८० ॥ इति रणक मुनि सिझाय संपूर्णम् ॥ ॥ * ॥ अथ सचित्त चित्त सिशाय ॥
॥
॥
॥ ॥ ( ढालचौपईनी ) ॥ प्रवचन अमरी समरी सदा । गुरुपद पंकज प्रणमीमुदा । वस्तु तणा कहुँ काल प्रमांण । सचित्त चित्त विधि है जिम मां ॥ १ ॥ बिहुँ रुतु मिली चौमासा मांन । षटस्तु मिलीनें वरिस प्रमां
। वर्षा शीत नृष्ण त्रिकाल । त्रिहुं चौमासें वरस रसाल ॥ २ ॥ श्रवण जाद्रव आसू मास । काती इम वरसाला वास । मागसिर पोस माहनें फा ग। ए च्यारे सीयाला लाग ॥ ३ ॥ चैत्र बैशाखनें ज्येष्ट प्रसाद । नृष्णकाल एच्यार गाढ । वर्षा शरद शशिर हेमंत । वशंत ग्रीष्म षट्कतु इम तं ॥ ४ ॥ रायुं विदल रहे चनुयाम | नंदन आठपुहुर अभिराम । प्रहरसोल दधि कां जी बाब । पढे रहैतो जीवनिवास ॥ ५ ॥ पापड लोइया वटक प्रमांण । च्यारपहुर तिम पोलीमांन । पनर दिवस वर्षापकवान । त्रीसदिवस सीयाला मां ॥ ६ ॥ वीस दिवस उन्हालै रहै । पबै प्र थायै जिनकहै । मात्र प्रमुख नीवी पकवांन । चलितरमै तसकाल प्रमाण ॥ ७ ॥ धांन धोयण बवमी पर माण । दोयघकी जवांणी जांण । फल धोयण एक प्रहर प्रमाण । त्रिफला जल वमनुं मांन ॥ ८ ॥ त्रिणवारे ककलिनं जेह । सुधनुष्णजल कहियै तेह | प्रहर तीन चन पंच प्रमाण । वर्षा शीत उन्हालै जांण ॥ ९ ॥ श्रा बण माद्रवमै दिनपंच | मिश्रलोट प्रणचालित संच । मिगसर पोसे त्रिण दिन जांण । श्रासू काती चनदिन मांन ॥ १० ॥ माह फागु को प याम | चैत्र वैशाष च प्रहर प्रमाण । जेठ आसाढ प्रहर त्रिण जोय । ति