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रत्नसागर. ण नपरांत सच्चित्त ते होय ॥ ११ ॥ गोहूं शालि पमधान कपास । जव त्रि णवरसैं अचित्त होय खास । विदल सर्व तिल तूंवरदाल । पांच वरसै होइ अचित्त विशाल ॥ १२ ॥ अलसी कोद्रव कांगने ज्वार । सातेवरसें अचि त्त विचार । शीत ताप वर्षादिक जोय । सचित्त जोनि अचित्त तेहोय ॥ १३ ॥ हरमै पीपर मिरच विदाम । खारक द्राख एला अनिराम । जोय ण शत जल वटमां वहै । साठिजोयण थलमांहै रहै ॥ १४ ॥ सचित्तवस्तु प्रवहणनी जेह । थाइं अचित्त प्रवचन कहै एह । धूम अगनि परीयापणे करी । अचित्तयोनि तसथायै खरी ॥ १५ ॥ बारपहुर रहै जगलीराव । सोलपहुर राईता अजाब । कमाह विगय परिसेक्यो धांन । पहिरचोवीस गोमूत्रनुमान ॥१६॥ अति खारं घृत कालातील । पलटाई वर्णादिक रील। काचो दूधरहै बहुबार । एह अन्नद कहै मुनिसार ॥ १७ ॥ हुँढणीयादिक विदलनीदाल । सेक्या धांनपरें तसकाल । च्यारपहुर सीरो लापसी । विदलपरै ते प्रवचन वसी ॥ १८ ॥ प्रथम दिवस प्रारंभी गिण्यो । काल प्रमाण सवि केहर्नु नण्यो । चलित रस जेहनो जिहांथाय । तिहां ते वस्तु अन्नद कहिवाय ॥ १९ ॥ धवलो सैंधव कह्यो अचित्त । श्राप विधैं अख्यरां प्रतीत । एकालादिक नेहरा जेथाय । तेह अचित्त थापना न थाय ॥ २० ॥ गीतारथनें वयण जोय । आचीरण अनाचीरण होय । आई धांन अंकुर नीक लै । तबते वस्तु अन्नदमा निलै ॥ २१ ॥ गेरू मणसिल लवण हरियाल । आवै जलवट मांहि रसाल । तेह अचित्त होइ प्रवचन साखि । पिण ले बानी नही तमुन्नाखि ॥२२॥ इम बोल्यो लवलेश विचार । विस्तर प्रवचन सारोधार । धीरविमल पंमित सुपसाय । कवि नय विमल कहै सिशाय॥२३॥ इति सचित्त अचित्त वस्तु स्वरूप सिशाय ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
॥ॐ॥अथ १९ दोश कासग्ग सिशाय लि०॥॥
॥ॐ ॥ सकल देव समरी अरिहंत । प्रणमी सदगुरु गुणे महंत । नगणी सदोष कानसग्ग तणा । बोलु श्रुतअनुसारै सुण्या ॥ १ ॥ घोटक दोष कह्यो बलिएह । वांको पगराखै बलिजेह । लत्तादोष बीजो हवैसुणो । मील हला वै जे अति घणो ॥ २ ॥jठीगण लैई जेरहै । थंनदोष ते तीजो कहै । मा