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प्रतिक्रमण हेतु.
१२७ दिक सुध मार्ग (इइ) रिषनादि चळवीस तीर्थकरे आपसेव्यो (अने) व्य जीवनें नपदिस्यो। ते कारणें । बीजै आवश्यके चनवीस नगवंतनी स्त वना करवी कही॥ ॥ पछै धर्ममांहें विनयना प्रधानपणा हुंती । गुरुनें वांदणा देई । अतीचार आलोइवा । अनें वांदणारे । तेशरीर सुध विना नदेणी (ते माटे) प्रथम मुहपत्ती पमलेही । सुधकरी । तिणथी काया पनि लेहे ॥ तीजै आवश्यके वांदणा देवी कही ॥ ॥ प3 गुरु आगै । अती चार आलोई प्रायश्चित्त मांगै ( गुरु कहै पमिक्कमह ) (जे माटे) कित ना इक अतीचार तो आलोयां थी सुचथया। अनें कितना इक न थया (ते सुच करवानो) चोथो आवश्यक पमिकमणो कह्यो ॥ ॥ तिहां न्तम कार्य सर्व नवकार पूर्वक करवा (ते माटे) प्रथम नवकार कहै । अ ने समन्नाव धारी पमिकमवु (ते माटे) पढ़ सामायिक सूत्र कहै । तिवार पने साधु श्रावक आप आपणा अतीचार पमिकमवा निमित्तें सूत्रनणे । पछै समस्त अतीचार रूप जार निवर्त्तवे करी । हलको हुवो थको। ऊनो थई सूत्र पूर्ण करै । इम अतीचार पमिकमी। श्रीगुरुने विषै पोतानो कीधो कोई अपराध खमाइवा निमित्तें । वांदणा देवै । प3 गुरु प्रमुखनें खमावी कानसग्ग निमित्तें । फेर वांदणा देवै । ए वांदणा गुरुनें अपणो आधीन पणो जणाइवा निमित्ते पिण जाणवी । पछै (श्रावक) आयरिय नवशाए ( इत्यादी तीन गाथा नणे) हिवे आलोयण पमिमकणा थी शुध न थया (जे) चारित्रादिकना मोटा अतीचार (ते)शुध करवानें अर्थ पांचमो आ बश्यक कानसग्ग करै ॥ ॥ तिहां । प्रथम सामायिकादि तीन सूत्र न णी। चारित्राचार सुधि निमित्तें दो लोगस्स चिंतवै । इहां तीजी वार वले सामायक उच्चारण कीधो (ते) सर्व धर्म क्रिया समता परिणामें की धी सफल थाइ । ए अर्थे । पछै ज्ञान थी समकित अधिको है (ते मारें) दर्शनाचारशुधि निमित्तें लोगस्स कही। सबलोए (इत्यादि) सूत्र नणी। एक लोगस्सनो कानसग्ग करै । पचै श्रुतज्ञानाचार शुधि निमित्तें । पुक्खरवर दीवढे ( कही) सुयस्स जगवन (इत्यादि नणी) बीजो एक लोगस्सनो कानसग्ग करै (इहां) प्रथम कानसग्ग दोय लोगस्सनो कह्यो । ते ज्ञाना