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रत्नसागर. थाइ॥६॥०॥श्रीसङ्गुरुना मुखथी सांनख्यारे। एहवा वचन विलास। ते वहुमानेंरे निज चित्तमें धरयारे। नेमीसुत भाईदास ॥७॥०॥ चैत्य कराव्युरे सुंदर सोनतोरे। मनधरि अधिक नतास। शीतल प्रजुनोरे बिंब नरावीयोरे। सहस फणा वलि पासवान ॥ वरस अधारह सत्तावीसमेंरे। माधव मास मकार। नऊल प्रादसी दिवस थापीयारे। विंब अनेक नदार॥९॥ ज०॥ एकसो इक्यासी सहु मेलै थयारे। बिबादिक सुविचार । कीध प्रतिष्टा ते दिन तेहनीरे। विधपूर्वक मन धार ॥ १०॥०॥श्री जिनलान सूरी श्वर दीपतारे । श्रीखर तर गलाण । तासपसाय में शीतल जिन थुएपारे । विबुध कमाकल्याण ॥ ११॥०॥ ॥ इति शीतल जिन स्तवनं ॥॥ ॥ ॥ अथ अढाई द्वीप २० विरहमान स्तवन ॥ ॥ ..॥ ॥ वंषु मनसुध विहरमाण जिणेसर वीस । दीप अढीमें दीप जे वंता जगदीस । केवल ग्यांननें धारै तारे करि नपगार । किण २ गमें कु ण २ जिन कहिस्युं सुविचार ॥ १॥ पंतालीस लद जोयण मानुन क्षेत्र प्रमाण । बलियाकार आधै पुष्करसीमा जाण । दोय समुद्रे सोहे दीप अढाई सार । तिणमें पनरै करमा नूमीनो कहूं अधिकार ॥ २ ॥ पहिलो जंबूदीप समै विच थाल आकार । लांबो पिहलो इकलख जोयणनें विसतार। मोटो तेहनें मध्य सुदरशण नामें मेर। तिणथी दिसा विदिसांनी गिणती च्या रे फेर ॥ ३ ॥ मेरुथकी दवाणदिसि एहनरत सुनकेत्र । पांचसै गवीस जोयण उकला तेहनो वेत्र । उत्तरखंममें एहवो ऐरवतोत्र कहाय । इण विहुं करमांनूमी अरा गई फिरता जाइ ॥ ४ ॥ तेत्रीस सहस्र उसै चौरा सी जोयण जाण । च्यारकला ए महाविदेह विखन वखाण । वावीससै तेरे जोयण एकविजे पहुलाण । एहवी वत्तीस विजय विराजे जेहनें गण॥ ५॥ मे रुविच कर पूरब पत्रिम दोय विनाग। सोलेर विजय तिहां विचरे श्रीवीतराग। सासते चोथे आरै तारै श्रीअरिहंत । एहवो महाविदेह करम चूमि त्रीजीतंत ॥६॥ पूरखविदेह विजै पुष्कलावति आठमी ठाम। पुमरीकणीनगरी तिहां श्री सीमंधर स्वांम । वप्रविजै पचीसमी विजया पुरनो नाम।पत्रिम विदेह वीजोयु गमंधर कीजै प्रणाम ॥७॥ तिमहीज नवमी वहविजै वलि पूरबविदेह । नयर सु