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आबूजी (तथा) शीतल जिन स्तवन. २७७ इहां देवल सोह बधारी । नेमनाथजी वाल ब्रह्मचारीरे ॥ जा० ॥ कसवट पांहण केरी। मूरति सुरमा रंग हेरीरे॥१३॥ जा०॥ देवल वामो दीगे। तेतो लागै नयणे मीठोरे ॥ जा० ॥ तिहां केई देवल पासै । लोकजोवै घ णो तमासोरे॥१४॥ जा० ॥ त्रिणगान आगल जाईये । देवल देखी सुख लहीये रे ॥ जा०॥ चौमुख प्रतिमा च्यारो। आदिनाथ देव जुहारोरे॥१५॥ जा०॥ सोवनमें साते धातो। किग मिग रही दिनने रातोरे॥ जा० ॥म ण चवदेसे चम्मालौ। जिण बिंबनो मार निहालोरे ॥ जा० ॥ १६ ॥ श्रीमाली नोम सोनागी। जिणवरथी जसुलय लागीरे ॥ जा० ॥ एहनी करणी वाह वाहो । इहांलीधो लखमी लाहोरे ॥ १७ ॥ जा०॥ ए डुंगरी यै आवी। जिण जात्रकरै मननावीरे ॥ जा० ॥ जिहां तिहां पूज रचावै । नाटकीया नाच करावेरे॥१८॥जा०॥ रातीजोगो दिवरावो । जिणवर ना जस गुण गावोरे॥ जा०॥ साहमी वबल कीज्यो । जातमलीनो ज स लीज्योरे ॥ १९॥ जा०॥ आगेथी आवी चाली। वातां केई अचरिज वालीरे॥ जा० ॥ सुणीय जे कोई । अहिनाणे जो ज्यो तेईरे ॥ २० ॥ जा०॥ ए तीरथ गुणगावे । जात्रानो फलते पावै रे ॥ जा ॥ए तीरथ स म तोले । कुणावै रूप चंद वोलैरे॥२१॥ जा० इति आबूजी स्तवन॥१॥ ॥ ॥ अथ श्रीशीतल जिन चैत्य प्रतिष्टा स्तवन ॥ ॥
॥॥नवी जिनपूजोरे शीतल जिन पतीरे। नयना नंदन चंद। प्रनु जी विराजैरे सूरति बिंदरैरे। नंदा देवीना नंद ॥१॥०॥ जग हितकारी रेजिनजी अवतरयारे। श्रीदृढरथ नृप गेह । श्रीवह सोहै रे लांउन सुंदरूरे । कनकवर्ण प्रनुदेह ॥२॥०॥ विषय निवारीरे संयम संग्रह्योरे । लाधु के वल नांण । सघन घनाघन जिमध्रम दरसतारे । विचरया त्रिनुवन नांण ॥ ३ ॥न । वेदनी प्रमुख जे सेष रह्या हुतारे । च्यार अघाती कर्म । दूर निवारयारे अनुक्रम तेहनें रे। पाम्युं शिव पद सर्म ॥ ४ ॥ ॥ संप तिकाले रे श्रीजिन राजनोरे। पूजीजै प्रतिबिंब । प्रतिदिन लहीयैरे प्रनु सुप्र साद थीरे। वांगित फल अविलंब ॥ ५ ॥ ज० ॥ श्रीजिनवरनो बिंब बि लोकतांरे। उकृत दूर पुलाय। इंद्रीयनिग्रह सुग्रह संपजैरे। समकित पिण दृढ