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रत्नसागर.
(कलश) इम समवसरणें रुविवरण सह जिनवर सारखी । सरद है ते है सुख समकित परम जिन भ्रम पारखी । प्रकरण सिद्धांते गुरू परंपर सुणी सहु अधिकार ए । संस्तव्यो पास जिणंद पाठक धर्म वर्धन धार ए ॥ २७ ॥ इति समवसरण विचार भाषा गति स्तवन ॥ ॥
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॥ * ॥ अथ प्राबूजी तीर्थ महिमा स्तवन ॥ ॥ * ॥ जात्रीमा नाई आबूजीनी जात्र करे ज्यो । जात्र नणी नमहे ज्यो । तुझे नरभव जाहों जीज्योरे ॥ जात्री० ॥ पंचतीरथी मां हे बाजै । आबू मारुमै देस विराजेरे ॥ जा० ॥ स्वरगथी वादे लागो । उँचो अंबरीये जाइ जागोरे ॥ १ ॥ जा० ॥ एतो देवांनो वास कहावै । निरखता त्रिपति नथावेरे ॥ जा० ॥ एतो डूंगरीयानो राजा । एहनीबे वारह पाजारे ॥ २ ॥ जा० ॥ हरितु वास वणाव्यो । एतो चंपला अंबलां बायोरे ॥ जा० ॥ सरवर ऊरणा जाजा । जिहां तिहां वनवेल्यां प्राकारे ॥ ३ ॥ जा० ॥ जार ढारे वराई । एतो इहांहीज निजरे आईरे ॥ जा० ॥ दह दिस परमज
वै। फूलमानो रंग सुहावेरे ॥ ४ ॥ जा० ॥ ऊपर भूमि विसाला | देव a. दीठा रखीयाला रे ॥ जा० ॥ विमल मंत्री वरदाई | चक्केसरि देवि सहाई रे ॥ ५ ॥ जा० ॥ पोरवाम वंस वदीतो । जिण दल पतिसाही जीतोरे ॥ जा० ॥ 'देव ते करायो । पाहण आरास मँगायो रे ॥ ६ ॥ जा० ॥ जीणी २ कोरणी
रयो । दल मांख जेम नकेरथोरे ॥ जा० ॥ नवी २ जांतिवनाई । जिहां तिहां कोरणीया किणाईरे ॥ ७ ॥ जा० ॥ उत्तरे पाहणजेतो । जोषीजै पाहण ते तोरे ॥ जा० ॥ प्रादिजिणेसर सामी । प्रतिमा थापी हित कामीरे ॥ ८ ॥ जा० नगणीस कोम सोनईया । द्रव्य लागति करि जस जीयारे ॥ जा० ॥ करजो डीनें आगे । मंत्री जिनवर पाय लागे रे ॥ ९ ॥ जा० ॥ पूठै चढीया हा थी । मंगाणा पति साह साथी रे || जा० ॥ इण देवल सम वढकोई । नूमं कल मांहि न होईरे ॥ जा० ॥ १० ॥ वलि तिण वंस विगताला । वस्तपाल अने तेजपालारे ॥ जा० ॥ देवनमी रिधिपाई । इहां तियाँ पिए सफल क राईरे ॥ ११ ॥ जा० ॥ तेहवो जिणहर पासें । वारकोमनी लागति नासैरे जा० ॥ देवराणी जेठाणी । आालानी अजब कहांणीरे ॥ १२ ॥ जा० ॥