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निकूणे करात कूण जिन वावमाण ए । वारकर
समवसरण स्तवन
२७५ ण तिहां चिहुं दिसेंजी । मोतीयें काक माल । सम विचकूण ईसांणमें जी॥ देव बंदो सुविसाल ॥१५॥ प्रा०॥ देव मुनि नाद नपदिसै जी। जिन गुण गावसी तेह । अह्म जिम आई शिर ऊपरें जी । गाजसी तेह गुण गेह ॥१६॥ आ०॥ (ढाल) सफल संसारनी॥ ॥ पुवदिशि आसणे आइ वैसै पहू । सुरकृत चौमुख रूपदेखे सहु । दीपै अशोक तरु वार गुण देह थी। देखि हरषै सहू मोर जिम मेहथी ॥ १७॥ मोतियां जालि त्रिण नत्र सु विसालए । रूप चिहुं चिहुं दिसें चामर ढालए । योजन गामनी बांणि श्री जिनतणी । जगवंत नपदिसें बार परषद नणी ॥ १८॥ प्रदक्षिणा रूपथी अगनिकूणे करी । गणधर साधवी तिम वेमाणीय सुरी । ज्योतषी नुवणनी वितरी स्त्री पणें । नैश्त कूण जिन वाणि ऊनी सुणे । त्रिहुं तणा पति वाय कूणमें जाणए । सुर वैमाणीय नर नारि ईसाण ए । वारह परष दा मद मकर डोमे ए । नूख त्रिष वीसरै सुणे कर जोमए ॥ १९॥ पूठ जाममल तेज प्रकास ए । जोयण सहस धज ऊंच आकास ए । ऊल हलै तेज ध्रुम चक्र गगनें सही । महक सहु बारणे धूप धांणा सही ॥ २०॥ वाहण वहिल सहुधरीय पहिलै गठै । होइ पग चारि नरनारि ऊंचा चढे । जिन तणी वाणि सुणि जीव तिरजंच ए । वैर तजि वीय गढ रहै सुख संच ए ॥ २१॥ पुण्यवंत पुरषते परषद बारमें । सुणे जिन वाणि धन गणय अवतार में । चौविह देव जिण देव सेवा रचै । मणिम यी माहिली प्रोलमांहे वसै ॥२२॥ चिहुं दिसि वाटली वावि चौ जाणी यै । विदसि चौकूण दोइ २ वखाणियै ॥ आठ जिहां वावि जल अमृत जेम ए । स्नान पाने वपु निरमल हेम ए ॥ २३॥ जय विजय जयंत अपराजिया । मध्य कंचण गढे प्रोल वसंतिया । तुंवरु पुरुष खटंग अर्चि माल ए । रजतगढ प्रोलना एह रखवाल ए ॥२४॥ पहिल त्रिगमो नहुन जिण पुर ग्राम ए। देव महर्षिक रचै तिण गम ए । करण वारवार नहीं का रण कोई ए । आठ प्रातीहारज ते सही होइ ए ॥२५॥ जिण समवसर णनी शधि दीठी जीय । तेह धन धन्य अवतार पायो तियै । पास अरदा स सुणी वंगित पूरज्यो । हिव मुझ ताहरो सुच दरसण हुज्यो॥२६॥