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वीश स्थानक गुणवर्णन पूजा. . ६२३ ॥२॥ ॥ (राग घाटो ) मेरो मन वसकर लीनो। ए चाल ॥ * ॥ जावै ग्यान वंदन करीयै । शिवसुख तरुकंद । नावै ॥ जिनचंद्र पद गुण धरीयै। वरीय परम आनन्द ॥ १ ॥ जावै० ॥ मतिनाण श्रुत २ पुनरवधि ३। मनपर्यव ४ जाण ॥ नावै०॥ लोका लोकनाव प्रकाशी। वर केवल नाण ५॥जावै० ॥ २॥ पंच ए इक्कावन ५१ दे। क ह्यो जिनवर नान ॥जावै ॥ जगजीव जमता जेदै । ग्यानामृत रसपान ॥ लावै०॥ विणग्यान कीधी किरिया । होय तसुफल ध्वंस ॥ नावै० ॥ जहाना प्रगट ए करीयै । जिम पय जल हंस ॥ नावै०॥ ४ ॥ बरनाण स हितमु किरिया । करी फल दातार ॥ नावै० ॥ हुवो ग्यान चरण रसीला। लहो नवजल पार ॥ नावै० ॥ ५॥ ग्यानानंद अमृतपीधो। जरतेसर म हाराय ॥ जावै ॥ तिणसें अमृतपद लीधो । सुरपति गुणगाय ॥ लावै ॥ ॥६॥ सेवीग्यान जयत नरशै । नये जिन महाराज ॥नावै० ॥ सोहैग्यान ए त्रिनुवनमें । सहुपरि सिरताज ॥ नावै० ॥ ७ ॥ (काव्यं ) उद्दव प जाय गुणकरस्स । सयापयासी करणोडुरस्स । मिवृत्त अन्नाण तमोहरस्स। णमो णमो नाण दिवायरस्स ॥८॥(जी श्रीज्ञानायनमः)॥॥॥॥ इति अष्टमपदे श्रीज्ञानपूजा ॥८॥ ॥ ॥ ॥ॐ॥
॥ ॥ अथ नवमी दर्शन पदपूजा लि० ॥१॥ ॥ ॥ (दूहा) ॥ ॥ दर्शण आश्रय धर्मनो। एहना षट् नप मान । दरशण विण नहि चरणविद । नत्तराध्ययने जान ॥१॥ जिणदर शण फरस्यो ललो । अंतर महुरति मान । अरधपुग्गल परियटरहै । तमु संसारवितान ॥२॥ ॥ (राग कामोद) चंपक केतक मालतीए। अश यो मालती ए॥(ए चाल)॥॥ जिनदरसण मुझ मनवस्यो ए। (अइयो मनवस्यो ए)। उपजत परम आनंद । जिनदरशन दरशन दीयै । विमलना शा तस्कंद ॥१॥ दरशण मोहरिपु जीतीया ए॥ (अश्यो० ) वर दरशण नलसंत । दरशण घट परगट हुआ । नवीयण जव ननमंत ॥२॥ जिनव रदेव सुगुरु व्रती ए। केवली कथित जिनधर्म । तीनतत्त्व परिणतिरमें । ते दरशण कर शर्म ॥३॥ जिनप्रनु वचनो परि सदा ए॥ (अश्यो०)॥ थिर