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रत्नसागर, श्रीजिनपूजा संग्रह
शरदहण धरत । इण लक्षणतें जानीये । समकितवंत महंत ॥ ४ ॥ इग, डुंग, ति, चौ, शर, दश, विहा ए । ( अइयो ० ) सतसहि ६७ द विचार | वलि पररीति समकित नएयो । द्रव्य नाव परकार ॥ ५ ॥ द्रव्ये जिनदरश कह्यो । जावै समकित सार । द्रव्यत दरशण जावतो । दरशण कारणधार ॥ ६ ॥ द्रव्य दरश यदि गतबलीये । तदपि उत्तर हितकार । शय्यंनव जिनदरश । पायो दरशण सार ॥ ७ ॥ दरशण विष किरिया हता ए । अंकविना जिम बिंदु | बलि हणीयो विण चंद्रिका । वासरमें जिम झंडु ॥ ८ ॥ हरिविक्रम नृप सेवताए । दरशण पद मनिराम । पद श्रीजिन हर धरयो । वधते शुनपरिणाम ॥ ९ ॥ ( काव्यं ) प्रतिविन्नाण सुका रणस्स । प्रणंत संसार विदारणस्स ॥ प्रांत कम्मावलि धंसणस्स । मो मो निम्मल देश ॥ १० ॥ ( झी श्री दर्शनायनमः ) ॥ ९ ॥ इति नवमपदे श्रीदर्शन पूजा ॥ ९ ॥
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॥ ॥ अथ (१०) बिनयपद पूजा लि० ॥ ॥ * ॥ ( दूहा ) ॥ * ॥ विनय नुवन रंजन करे। विनये जस विसतार । विनय जीन नूषित करै । विनयै जय जय कार ॥ १ ॥ विनयमूल जिनधर्म नो । विनय ग्यान तर कंद | विनय सकलगुण सेहरो । जय जय विनय सनंद ॥ २ ॥ ( राग सामेरी ) पूजोरीमाई जिनवर (ए चाल ) ॥ ॥ व्यावोरीमाई विनय दशमपद ध्यावै । पंच नेद, दश विध, तेरस वि ध। बावन नेद गणेशै ॥ ध्या० ॥ बासठ भेद का आगममें । विन यता सुविसेसै ॥ १ ॥ ध्या० ॥ तीर्थकर १ सि६ २ कुल ३ गण ४ सं घा ५ । किरिया ६ भ्रम ७ वरनांणा ८ ॥ ध्या० ॥ नांणी ९ प्रचारिज १० मुनिथविरा ११ । पाठक १२ गणि १३ गुणजाणा ॥ २ ॥ ध्या० ॥ एरिहादिक तेरसपदनो । विनयकरै जेनावै ॥ ध्या० ते तीर्थकरपद अ
नविनें । प्रतिपद सुखपावै ॥ ३ ॥ ध्या० ॥ जिमकांचन में मृदुगुण ला जै। नहीय कालिमा पावै। ध्या० ॥ तिलए सकल धातुमें उत्तम । नाम क ख्याण कहावै ॥ ४ ॥ ध्या० ॥ तिमविनयीमें है मृदुतागुण । कुमति क ठिनता नासै ॥ध्या०॥ कृष्णादिक लेश्यानी मलीनता । जाये विनयगुण ना