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रत्नसागर.
जैन धरम दीपावता । महिमा जेहनी प्रणपाररे । सहु संघतणा सिरदाररे । सखीसुमतितणा जरताररे । जेहनें प्रणमें नरनाररे ॥ सखि ० ॥ ५ ॥ सूत्र अर थ विसतारता । सखि देता धर्मोपदेश । दान शीयल तप जावना । बारै जाव ना सुविशेषरे । द्रव्यादिक अर्थ निशेषरे । गुण अरु पर्याय प्रदेशरे ॥ सखि ०॥ ६ ॥ सुणतां श्रीजिनराजना । सखि अमृत वचन विलास । कृणमे कर्म समूह नो । सखि निश्चै होवै नाशरे । थायै निजग्यान प्रकाशरे । कहे बाल सुगुरु सहवासरे । करतां निजरूप सुभाषरे ॥ सखिमो० ॥ ७ ॥ इति वधावो ॥ * ॥ ॥ * ॥ अथ गुंहली लि० ॥ ॥
॥ ॐ ॥ नणदल विंदलीदे (ए चाल ) ॥ * ॥
॥ * ॥ जिनशाशन जयकारी । जगगुरु गोतम गणधारी रे। सहीयांमुंह ली करो । गुंहजी करो गुरुसंगे । श्रुत नगति तर्फे नवरंगेरे ॥ सही ॥ विचरंतां मुनिराया । राजग्रही नगरी आयारे ॥ सही ० ॥ १ ॥ पंचेंद्री विषय निवारी नवविध ब्रह्मव्रत धारीरे ॥ सही ० ।। च्यार कषाय कुं टाले। पंचमहाव्रत सूधा पालैरे ॥ सही ० ॥ २ ॥ सेवै पंचाचार | धरै पंचसुमति मनुहाररे ॥ सही ० ॥ त्रिगुप्ती बलि बाजै । इम बत्रीश गुणें गुरुराजैरे || सही ० || ३ || चरण करण गुणसंगी। शुद्धतम अनुभव रंगी रे || सही ० ॥ उतसर्गने अपवादी । वहु नयगम जंग प्रवादीरे ॥ सही ० ॥ ४ ॥ मोक्ष मारग उपदेशी । धरे ध रम ध्यान शुनलेसी रे ॥ सही ० ॥ २ ॥ रत्नत्रय अभ्यासी । जविजन चि तकमल विकाशी रे ॥ सही ० ॥ ५ ॥ श्रेणिक नरपति आवै । गणधर वंदन शुभ जावैहे ॥ स० ॥ चेलणा स्वस्तिक पूरै । मोहतिमर नरमनें चूरैरे ॥ सही० ॥ ६ ॥ निसुणी गुरु मुख वांणी । समकित निरमल करें शाणी रे ॥ स० ॥ श्रुत सेवा जेकरस्ये । तेकीर्त्तिसागर पद वरस्यै रे || सही ० ॥ इति ॥ ॥ * ॥ अथ मंगल वधावो ॥ ॥
॥ ॐ ॥ पहिलुंए मंगल जिनतणं । नाम सोहामणोए । वीजुंए मंगल सिधनुं । ध्यानर लियामणोए ॥ त्रीजुं ए मंगल जिनवरे धर्मजेदाखियोए । जिहां सुदेव सुध गुरुतणो । मर्मवनि जाषियोए ॥ १ ॥ चौथोए मंगल साधुनो नामसंनारियैए । पंच महाव्रत पालता चित्त अवधारियैए । प्रति