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देशना, बधावा, गुंहली. ज गुणवंत । शुच समाचारी जगतेहनीरे । सुणि हरखित होय संत ॥९॥ नवि० ॥ शुध परंपरमां थया अनुक्रमें रे । श्री जिनलान सूरीश । सात पटोधर जगमां परगमारे । श्री जिनचंद मुणीश ॥ १० ॥वि०॥ तेज प्रतापे जीत्यो दिनमणीरे । सोम्यपणे निजपत्ति । गंभीर गुण सागर जीतियोरे । सुर सेवै दिन रत्ति ॥११॥ नवि० ॥ स्या दवाद जिन धर्म वखाणतारे । नय निक्षेप विचार । जंगपदारथ अति विस्तारसोंरे । लाखे नवि हितकार ॥ १२ ॥ वि० ॥ ग्यान पूरब क्रि या साधै जलीरे । जिन वाणी अनुसार । एहनें सेवोरे क्युंनूला नमोरे । थाय सफल अवतार ॥१३॥ नवि०॥ सुरतरु गंमी बांवल आदरैरे। कोइ नर मूढ गिमार । ए नेखाणो साचो मत करोरे। लहि एहवो गणधार ॥१४॥ प्रवि०॥नामधारक आचारजने घणारे । पंचम काल मकार । पिण इणसरिखो जगमा को नहीरे । स्व पर तारण हार ॥१५॥वि०॥ वाचक लावण्य कमल पसायथीरे । कमल सुंदरनी एवांण । जे मानसी ते सुख नित पांमसीरे। पातिकनी करि हांण ॥ १६ ॥ नवि०॥ इति वधावो॥ ॥॥
॥ ॥ पुनः वधावो॥ * ॥ ॥॥ श्रावण पावस कलश्यो (ए चाल )॥ ॥ ॥ ॥ मोतियमे मेहवरसीयो सखि । आजहुवो आणंद । पूजपधारया विहरता । नामें शौजाग्य सूरिंदरे। जिनहर्ख सूरिंदनो नंदरे । सदगुरु सुरत स्नो कंदरे । मुखसोहै पूनमचंदरे ॥ सखि मोतीडै मेह° ॥१॥दांति गु 0 करी सोनता। सखि पंच महाव्रत धार । वर उत्तीस गुण सदा । विचरै जे निरतीचाररे। रशीया जे पर नपगाररे । नपशम रसना नंमाररे। पालै पंचा चाररे ॥ सखी मोती० ॥२॥ मेघतणी पर गाजता । सखिमीठी जेहनी वांण । आपतरै परतारता । गुण गण रतनारी खाणरे । सहु आगमना जे जाणरे। प्रतपै जिम नलहल नांगरे । जेहनो अतिशय विन्नाणरे ॥ सखिमो० ॥३॥ परतिख सुरतरु सारसा । सखि इण पंचम काल । साथे जेहनें शोलता। मु निवर जिम मोतीमालरे । केई थिवरने केई वालरे । वंदीजै तेह त्रिकालरे। सखि मोती० ॥ ४॥ सूरि सकल सिर सेहरो । सखि खरतर गज सिणगार।